आदर्श नारी
आदर्श नारी
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राज पुत्री होकर दिन वन में बिताती थीं
जनक नंदिनी सीता पतिव्रत धर्म निभाती थीं
पति के संग चली वन में थीं
वन में भी पति धर्म न भूली थीं
अयोध्या की राजरानी दिन लंका में बिताती थीं
नीर भरी गगरी आंखों से छलक आती थीं
सूनी आंखों में दीप मिलन का जलाती थीं
पति हित के लिए पीड़ा अदम्य उठाती थीं
भूमिजा, वैदेही ,जानकी कहाती थीं
गर्भ के दिनों में भी आराम नहीं पाती थीं
किसे पता था राजरानी रीत प्रीत की निभाती थीं
कर्मो से ही माता जीवन पवित्र बनातीं थीं
पतिव्रत धर्म में उतरी सदा खरी थीं
बेटी, मां, पत्नी, बहू, सभी संबंधों में निपुण थीं
जीवन के कठिन पथ पर मिसाल बन खड़ी थीं
पतिव्रत धर्म सिखाने को सीता रूप धार चली थीं
किसे पता था सीता मां की परीक्षा अंतहीन थी
चलती परीक्षा की वेदी पर लिए साहस अटूट थीं।