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Pradeepti Sharma

Abstract

4.9  

Pradeepti Sharma

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आदियोगी मेरे

आदियोगी मेरे

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549


तुम नीरव हो,

गहरी निशा जैसे,

तुम तेज हो,

सुनहरी सुबह जैसे,

तुम,


आदियोगी हो मनन करते हुए,

सर्वस्व ब्रह्माण्ड का स्मरण करते हुए,

शक्ति की सौम्य झलक हो,

भैरव का रूद्र फ़लक हो,

तुम,


आदि भी अनंत भी,

समाधी में,

काल और से पर्यंत भी,

शिव हो,

अडिग हो,

दूर भी,

समीप भी,

प्रत्यक्ष भी,


अलक्ष्य भी,

श्वास हो,

प्रेम का,

विश्वाश हो,

समर्पण का,

तुम ह्रदय के करीब हो,

इस भक्त का नसीब हो,


कैसा तुम्हारा विवरण करूँ,

शब्द से परे हो,

तुम्हें यूँ नमन करुँ,

नृत्य से चित्र से,

अनुभूती सुन्दर भाव की,

चित्त में,

मन में,

मेरे अस्तित्व के कण कण में,


तुम्हारे नाम से,

शिव की दासी हूँ,

एक दर्शन की प्यासी हूँ,

प्रभु कृपा स्वीकार करो,

मेरी प्रार्थना स्वीकार करो।


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