आधी रात और तुम्हारा ख़्याल
आधी रात और तुम्हारा ख़्याल
हर बार अकेले में रात में देर तक जागते हुए
या सुबह उठकर आँख मलते हुए
दिल में जो पहला ख्याल आता है
या फ़िर हर ख्याल के बीच से होकर
एक हवा की तरह चीरता हुआ निकल जाता है
वो और कुछ नहीं तुम्हारा ख्याल आता है।
तुम्हारे साथ बिताए हर दिन
तुम्हारा मेरी तरफ तवज्जों देने के पहले या उसके बाद भी
जब भी तुम साथ रहीं अगर कुछ याद आता है
तो बस तुम्हारा ख्याल याद आता है।
ऑफिस में सीट पर बैठे हुए,
लेपटॉप पर वर्ल्ड एक्सेल की सफेद स्क्रीन को
की बोर्ड की काली स्याही से रँगते हुए
जो हल्की सी आँख बंद होते ही नजर आता है
तो बस तुम्हारा ख़्याल नजर आता है।
हँसी मजाक छेड़खानी या फ़िर बातों ही बातों में सब कह जाना
फिर देर तक चुप रहकर बाक़ी सब महसूस करना
और फिर उस चुप्पी को गले की खोखली खराश से
तोड़ जाने पर अगर कुछ याद आता है
तो बस तुम्हारा ख़्याल याद आता है।
तुम्हारे साथ किसी लम्बे रस्ते पर पैदल चलते हुए हर रास्ता
दिसम्बर की इक्कीस तारीख. के दिन जैसा छोटा हो जाता है
और अब दूर रहकर चार कदम भी 21 दिसम्बर की रात सा नज़र आता है।
पर हर रात के पहले पहर पर भी जो पहले पहल नज़र आता है
तो बस तुम्हारा ख्याल नजर आता है।
ये कॉल, ये मैसेज, ये मेल, ये वीसी
अब तो इतने जरिये भी हैं , पर कोई खबर क्यों नहीं लाता है,
अब तो डाकघर भी खुल गया है पड़ोस में मेरे
तार डाक तो अभी आते हैं लोगों के
बस तेरा ख़त नहीं आता है।
पर डाकघर से भी गुज़रते हुए भी अगर कुछ मेरे हिस्से आता है
तो बस तेरा ख्याल नजर आता है।
ऐसा नहीं है कि ये रात पहली है
हालाँकि पहले भी रात हुई है और होती थी,
पर उनकी तन्हाई को यू ट्यूब, फेसबुक और गूगल की भीड़ में जगह मिल जाती थी,
लेकिन अब जब रात होती है मोबाइल कागज सा खुल जाता है
मैंने कँहा कुछ लिखा है ये तो मुआ अंगूठा है जो सब कुछ लिखता जाता है,
जाने को रात भी जा रही है पर तुम्हारा ख्याल कँहा ही जाता है ।
और आँख मूँद जो अंधेरा देखूँ तो देखा कँहा कुछ जाता है,
क्योंकि हर अंधेरे में एक चमकीले जुगनू सा जो कुछ मुझे राह दिखाता है
तो बस मुझे तुम्हारा ख्याल नजर आ जाता है...तुम्हारा ख्याल नजर आ जाता है।