आधार
आधार
झुकता निश्चित एक दिन, खोता है आधार ।
अहंकार ले डूबता, सबका सुख -संसार ।।
सबका सुख -संसार, अहं- वेदी पर चढ़ता ।
दिन -दूना हर बार, विनाशक होकर बढ़ता ।।
" राखी " करके नाश, वार मद का है रुकता ।
करता निज उद्धार, विनय धर जो है झुकता ।।
झुकता निश्चित एक दिन, खोता है आधार ।
अहंकार ले डूबता, सबका सुख -संसार ।।
सबका सुख -संसार, अहं- वेदी पर चढ़ता ।
दिन -दूना हर बार, विनाशक होकर बढ़ता ।।
" राखी " करके नाश, वार मद का है रुकता ।
करता निज उद्धार, विनय धर जो है झुकता ।।