आ जाओ
आ जाओ
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आ जाओ,तुम भी
मनुष्यता के इस पेड़ की छांव में
देख लो दिलचस्प नजारे।
हम हैं ,वो है
देख रहे हैं इस होती हुई भोर में
सूरज को रंगते हुये पृथ्वी को
अनगिनत रंगों में।
वो भी कलाकार है,
मचल रही है
हाथों में कलम है
ब्रश है
पहले उसने एक स्केच बनायी
वो भी सूरज की,
और फिर सूरज को रंग दिया
मनुष्यता के रंग में।
ये जो छाया है शीतल शीतल
जिसमें हम खड़े हैं
मनुष्यता की छाया है
जो उसने बनाई है
सूरज को मनुष्यता के रंग में रंगकर।