आ जा रंग जमा दें
आ जा रंग जमा दें
भारत सभी त्यौहारों की राजधानी,
शायद ही हो कोई ऐसा,
जो हमारे देशवासियों को न भाता,
उस दिन हम सब हो जाते इकट्ठा,
भिन्नता में एकता का हो जाते प्रतीक,
और डूब जाते सूर, ताल और लय से।
ऐसा ही पर्व है होली,
बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता,
एक दूसरे को रंगारंग कर दिया जाता,
कोई बैर विरोध, मतभेद नहीं रहता,
सब एक दूसरे के गले लगते,
और गुलाल मलते।
ये हैं हमारी परंपरा का प्रतीक,
सदियों से चला आया ये दस्तूर,
इससे तो हमारे देवता भी नहीं थे अछूते,
वो भी मनाते थे जोर-शोर से,
बल्कि इसे तो माना जाता,
उनकी भक्ति का ढंग,
तभी तो कायम है होली का प्रचलन।
सबसे सही मौका होता,
युगल जोड़ों का,
जैसे ही वो मिले,
डाल दो रंग,
मिला लो अपने संग,
नाचो गाओ,
प्यार को और मजबूत बनाओ।
खास कर जब चलती पिचकारी,
तो गोरी के बदन को छलनी कर डालती,
वो अपने आपको बचाती,
परंतु कान्हा की तो वो मतवाली,
एक तरफ तो बचती,
दुसरी तरफ और रंग डालने को कहती,
जब दो प्रेमीयों का रंग मिलता,
तो इश्क का पौधा खिलता।
बच्चों का अपना ही रंग दिखता,
वो भी रंग से लवालव होते,
अपनी टोली बना,
दुसरी टोली सी भिड़ते,
खूब हंसते खेलते,
परीक्षाओं के प्रभाव से,
कुछ समय के लिए छूटते।
बडों की अलग ही छटा होती,
सब उनका आशीर्वाद लेते,
माथे पे तिलक लगाते,
बच्चों को खेलते देख,
उनको अपनी जवानी के दिन याद आते,
वो कैसे-कैसे हुल्लड़ थे मचाते।
परंतु इस बार है कुछ दिक्कत,
महामारी का प्रकोप बढ़ रहा,
सोशल डिसटैसिंग को है रखना,
मास्क भी है पहनना,
तो कुछ नया ढंग पड़ेगा सोचना,
जिससे होली का भी जोश हो पूरा,
सावधानीयों को भी न जाए तोड़ा।
क्यों न होली सोशल मीडिया पर मनाएं,
अलग अलग प्रतियोगिताएं करवाएं,
जो हो होली से संबंधित,
हर कोई हो उनमें शामिल,
ले खूब मज़ा,
और अंत में बोले,
होली है भई वाह।