Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

उल्टा दान ईश्वर को?

उल्टा दान ईश्वर को?

3 mins
14.5K


आज ऑफ़िस में हर बार की तरह जन्माष्टमी हेतु पैसे इकठ्ठे किये जा रहे थे, जिसका ज़िम्मा हर बार की ही तरह मीनू ने लिया था। कोई एक सौ एक, कोई इक्यावन तो कोई इकत्तीस सब अपनी-अपनी श्रद्धानुसार दान दे रहे थे।

जब मीनू अजय के पास पहुंची तो अजय ने साफ इनकार कर दिया, “मैं मन्दिर-मस्जिद के नाम एक भी पैसा नहीं दूँगा” सब को बड़ी हैरानी हुई कि हर बार सबसे ज्यादा दान देने वाला शख्स इस बार कैसे इनकार कर रहा है।

गौरव ने पूछा कि क्या हुआ अजय हर बार तो तुम ही सबसे पहले और ज्यादा दान देते थे, अब क्या हुआ ?

तब अजय ने कहा, भगवान को मैं अब मूर्ति के रूप में न मानकर एक शक्ति के रूप में मानता हूँ, जो कि स्रष्टि चला रहे हैं। भगवान कभी पैसे नहीं लेते, वे तो खुद सबके दाता हैं, और हम उल्टा उन्हीं को सब दान कर रहे हैं। आप लोगों को पता है कि जितना भी चढ़ावा आता है, उसका 25 प्रतिशत भी खर्च नहीं होता। सब पैसा जाता कहाँ है ! कभी सोचा है? सभी लोगों को प्रसाद में उनका लाया हुआ फल-फ्रूट, दूध, नारियल निकाल कर वापस कर दिया जाता है। कभी किसी ने देखा है कि किसी पुजारी ने सोना-चाँदी, गहने-आभूषण या पैसा भी वापस किया हो। फिर इतना पैसा आखिर जा कहाँ रहा है? एक निर्जीव मूर्ति तो वह सब ले नहीं जायेगी । सब मन्दिर के पुजारियों या ट्रस्टियों को जाता है और भगवान के नाम पर बेवकूफ़ हमें बनाया जाता है। ग़रीबों की मदद करो। ग़रीबों को खाना खिलाओ, बेसहारों का सहारा बनो, यही सबसे बड़ा धर्म है।

मैंने कुछ फोटो खींची है, देखोगे तुम सब!” यह कह कर उसने अपने मोबाइल में एक बच्चे की फोटो दिखाई, जो कि कूड़े के ढेर में से खाना बिन कर खा रहा था और पास ही कुत्ता और सूअर भी घूम रहे थे।

दूसरी फोटो में, एक ग़रीब बालक साधनों के अभाव में, पढ़ने की ललक से किसी स्कूल की खिड़की से झाँक कर पढ़ते हुए बच्चों को देख रहा था। बहुत सारे बच्चे खेल रहे थे, उनके तन पर कपड़े क्या चीथड़े से लटके हुए थे।

तीसरी फोटो एक बुजुर्ग की थी, जो हाथ में अखबार लिए आँखें गड़ा-गड़ा कर पढ़ने की कोशिश कर रहा है, लेकिन चश्मे के अभाव में असमर्थ है।

फोटो देख कर सब की आँखों में आँसू आ गये थे ।

“अब और कितनी फोटो दिखाऊ, आप लोगों को, मंदिर-मस्जिद को हमारे पैसों की जरूरत नहीं है, इन लोगों को है यह सुनकर तो सब सोच में पड़ गये, और दाँतों तले उंगलियाँ दबाने लग कि इतनी गहरी बात तो हमने कभी सोची ही नहीं, अब से हर बार चंदा अनाथाश्रम व वर्द्धाश्रम को ही जाता था।

अब हर बार अजय का दान और भी ज्यादा होता था।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational