माँ की बरसी
माँ की बरसी
“सब के सब नालायक हैं, आज इनकी माँ की बरसी है और किसी को कुछ याद नहीं है, तीन-तीन बेटे-बहू हैं। 'लेकिन देखो, मजाल है जो कोई अगरबत्ती भी जला दे ”,
कहकर रामनाथ गुस्से में बड़बड़ाते हुए पैर पटकते हुए बाहर बाज़ार की और चलदिए। कुछ ही दूर रास्ते में मंदिर पड़ता है, वहां पर मन्दिर के पुजारी ने आवाज़ दी,
“राम-राम, कैसे हैं रामनाथ बाबू"
रामनाथ : ठीक हूँ भाई, राम-राम
पुजारी: कहाँ जा रहे हैं, जाइए तैयार हो लीजिए
रामनाथ: क्यों
पुजारी : "अरे आपको पता नहीं आपके तीनो बेटे आये थे, उनकी माँ की बरसी है ना आज, उन्होंने हवन रखवाया है और हवन के बाद लंगर है, आपके हाथ से ही तो सब होना है, ये सब तैयारियां इसीलिए तो हो रही हैं, अभी तो सात बजा है नौ बजे हवन है जाइए तैयार होइए "।
रामनाथ ने देखा कि पंडितजी हवन की तैयारी कर रहे थे और मंदिर के प्रांगण में लंगर की तैयारियां ।
“अरे ये मैंने क्या किया”,
कहकर रामनाथ घर की और भागे और जाकर तीनों बेटों को आवाज़ लगाई तीनों बेटे, बहुएं और बच्चे सभी बाहर निकल कर आए देखा रामनाथ हाथ जोड़े खड़े थे , तीनों बेटों को लिपटाकर दहाड़ें मार कर रोने लगे ,
“तुम तीनों माँ को इतना प्यार करते हो, मुझे क्यों नही बताया मैंने ना जाने सुबह-सुबह क्या-क्या बक दिया बड़ा बेटा : नहीं पिताजी हम आपसे कुछ छुपाना नहीं चाहते थे, लेकिन बताकर अपना कर्तव्य जताना भी नहीं चाहते थे, उचित समय पर हम आपको बताने वाले थे।