पहला प्यार
पहला प्यार
मुनमुन और शानू कहाँ एक दूसरे को समझ पाए थे कि उनकी शादी हो गयी। शादी से पहले प्यार के नाम से दोनों को डर लगता रहा क्योंकि घर में दोनों के पिता इसके सख़्त खिलाफ थे और घर वालों से दुश्मनी करने के हिम्मत किसी में ना थी। जहां बोला गया, वही दोनों मिल लिये और परिवार वालों की हाँ पहले से थी तो एक दूसरे को पसन्द कर हाँ भी कर दी ।
दोनों ने पति पत्नी नहीं बल्कि दोस्त बनकर आगे बढ़ने का फैसला किया, दोस्ती की हद में रहकर रिश्ता आगे बढ़ रहा था, दो महीने गुज़र गए। जिस गर्लफ्रैंड-बॉयफ्रेंड की जिंदगी दोनों नहीं जी सके थे वह पल भी आ गया, जब शानू अपने मायके गयी तब रात को तीन तीन बजे तक फोन पर बात करके सुबह नौ बजे उठना और उठते ही फोन लगाकर गुडमार्निंग विश करना यह महीने भर चला जिससे दोनों के बीच एक रिश्ता कायम कर दिया ।
वो प्यार का बीज जिससे दोनों बहुत दूर थे आखिरकार दिल की गहराई में पनपने लगा। दोनों एक दूसरे को समझने की जद्दोजहद में थे। मुनमुन शानू को लेकर एक बड़े शहर में बस गया, जहां एक दूसरे को समझने के लिये बहुत समय मिला।
वक़्त गुजरता जा रहा था और दोनों वह करने लगे जो दूसरे को पसन्द आता। वैसा खाना, वैसा पहनना, वैसे ही रहना जैसे एक दूसरे को पसन्द था। दोनों एक दूसरे का नाम तो लेते लेकिन कभी तुम नहीं कहते, हमेशा एक दूसरे को इज़्ज़त देते हुए आप करके बात करते।
शानू ने प्यार के एहसास को अब तक पर्दे पर ही देखा था जहाँ प्यार होते ही वायलिन बजने लगती तो कहीं गाने। लेकिन असल जिंदगी में सिर्फ हर वक़्त के ख्याल में ही मुनमुन था, उसकी परवाह।
मुनमुन की परवाह ने शानू को कमज़ोर कर दिया क्योंकि इससे पहले कभी उसे इतनी परवाह करने वाला कोई मिला ही नहीं था। बीमार हो तो ममुनमुन का होना जरूरी है, सो रही हो तो मुनमुन का सिर बगल की तकिया पर होना ही चाहिए ।
प्यार का बीज पनप चुका था, जो एक निस्वार्थ परवाह में बदल गया। रात रातभर जागकर मुनमुन बीमार शानू का ख्याल रखता और तरह तरह के व्यंजन बनाकर शानू मुनमुन को खुश रखती।
परवाह में बदला प्यार, तन मन से भी एक हो चुका था। आखिरकार वह दिन भी आ गया जब दोनों ने एक दूसरे को अपना पहला प्यार स्वीकार किया। मुनमुन ने अपने पहले प्रेमपत्र को लिखा और शानू के जन्मदिन पर उपहार स्वरूप सोने का गुलाब बनवाया और उसके संग दिया, जिसमें लिखा था कि
"प्रेम कोई शब्द नही की बोला और हो गया, ना ही कोई देखने की चीज की फ़िल्म में देखा और किसी को सोचा और बस हो गया। अगर ऐसे ही होता तो सच्चे और निस्वार्थ प्रेम में जान देने वाले आशिकों की कहानियां सुनने नहीं मिलती । प्रेम कोई आतिशबाजी भी नहीं कि जिसको जलाया और शादी के ढोल बजने लगे। पहली नजर में कोई प्रेम नहीं होता बल्कि आकर्षण होता है जिसे सच्चे प्रेम में तब्दील होने में महीनों लग जाते हैं। महीनों लग जाते हैं किसी को समझकर उसे रूह में उतारने में और आप अब मेरी रूह में उतर चुकी हो। आपसे जुदा होना यानी खुद को खोना होगा ।"
उस दिन शानू भी अपने प्रेम को नहीं छुपा सकी और मुनमुन के गले लग गयी।