अंधी दौड़
अंधी दौड़
दिव्य शुरू से ही बहुत मेधावी छात्र था। उसने कानपुर आई.आई.टी. से बी.टेक. किया और उसके बाद उसका सिलेक्शन अमेरिका में एक प्रतिष्ठित कंपनी में हो गया। उसके माता पिता चाहते थे कि वह भारत में रहकर काम करे पर दिव्य ने उनके इस आग्रह को यह कहकर ठुकरा दिया कि यहां पर ऐसा अच्छा पैकेज कहां मिलेगा, जैसा वहां पर मिल रहा है। वहां पर बहुत जल्दी आगे बढ़ने के अवसर भी मिलते हैं।
दिव्य ने अमेरिका में जाकर जिस कंपनी में ज्वाइन किया वहां पर तीन-तीन शिफ्ट चलती थीं। दिव्य शुरू से ही बहुत महत्वाकांक्षी था। अब उसने यहां आकर डबल शिफ्ट में काम करना शुरू कर दिया। अब वो देर रात तक जागता और फिर सुबह जल्दी ही उठ कर अपने काम के लिए चला जाता था। अब उसकी दिनचर्या अनियमित हो गई थी। ना खाने का ही कोई ढंग था। कभी नाश्ता नहीं कर पाता तो, कभी लंच। जब भूख लगती तो ढंग से संतुलित खाना खाने के बजाय फास्ट फूड से ही अपना काम चला लेता था। कई महीने इसी तरह गुज़र गए।
उसके पास अच्छा बैंक बैलेंस हो गया था। पर अब उसे थकान एवं कमज़ोरी सी महसूस होने लगी थी। वो अब थकान मिटाने के लिए शराब और स्मोकिंग का सहारा लेने लगा। इसी तरह दिन गुज़रते जा रहे थे। डबल ड्यूटी करने की वजह से उसका चैन खो गया था और उसे पीठ में भी दर्द रहने लगा था। दर्द के लिए वह पेन किलर लेता रहता था। इसी तरह कई महीने और गुजर गए।
अब धीरे-धीरे उसके पैरों में भी सूजन आने लगी और यूरिन पास करने में भी दिक्कत महसूस होने लगी। उसे हर वक्त उल्टी आने को लगी रहती थी, पर इन सब बातों को नज़रंदाज़ करता हुआ वह बस पैसा कमाने की धुन में ही लगा रहा। एक दिन वो अपनी कंपनी की मीटिंग में बिज़ी था। तभी अचानक बेहोश होकर गिर पड़ा। उसे तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया। उसके वहां सारे टेस्ट हुए। जब रिपोर्ट आई तो पता चला कि उसकी किडनी फेल हो गई है। डॉक्टर, दिव्य से बोले, अगर आप अपने शरीर में दिखने वाले लक्षणों पर शुरू में ही गौर फरमाते तो किडनी फेल होने की नौबत ही नहीं आती।
अब दिव्य को बड़ा पछतावा हो रहा था। वो सोचने लगा कि पैसा कमाने की धुन में मैंने अपनी ज़िंदगी ही दांव पर लगा दी। अब उसने पैसे की अंधी दौड़ में ना भागने का और अपनी सेहत का ध्यान रखने का दृढ़ संकल्प ले लिया था।