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बदतमीज 'हिम्मत'

बदतमीज 'हिम्मत'

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"राधिका यह क्या बदतमीजी थी ? कोई ऐसे हाथ उठाता है बड़ों पर ? यही संस्कार दिए हैं तुम्हें हमने ?" माँ ने झल्लाते हुए पूछा।

"अच्छा और जो उन्होंने किया, उसके लिए माफ़ कर दे उन्हें ?" आँखों में आँसू भर राधिका ने कटाक्ष करते हुए जबाब के रूप में एक सवाल दाग दिया अपनी माँ पर। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसकी माँ उसका साथ देने की बजाय उसी को डाँट रही थी।

लेकिन माँ पर जैसे कोई असर ना हुआ, वो सामने पड़े पलंग पर धम्म से बैठ कर अपना माथा पीटते हुए बोली "हाय, क्या करुँ इस लड़की का ? जाने क्या सोच रहे होंगे मोहल्ले वाले अब ? ऐसे भरे मोहल्ले में मास्टर जी को खींच लायी, और लायी सो लायी उन्हें थप्पड़ भी लगा दिया। तू आज इसी कमरे में बंद रहेगी। अब तेरे बाऊजी ही समझायेंगे तुझे।" इतना बोल उन्होंने उठकर दरवाजा लगा दिया।

इधर राधिका अपने कमरे की खिड़की पर जाकर अपने बीते हुए कल की याद में खो गयी थी। उसकी आँखों के आगे वो मंजर आज भी ताजा था जब उसके ट्यूशन वाले सर ने अधिक समय तक रोका था उसे यह बोल कि वह एक टॉपिक में कमजोर है और अगर ध्यान नहीं दिया तो फेल हो जाएगी।

बेचारी राधिका को शायद ही मालूम था कि उसके सर उसे पढ़ाने के लिए नहीं बल्कि किसी और इरादे के लिए रोक रहे थे। उनका हाथ जब अपनी सीमा को पार करने लगा तो पहले तो राधिका ने चुपचाप झटक दिया, मगर वह हाथ रुकने वाला कहाँ था, वह अपनी सीमाओं को पार करने की जद में राधिका को चोट पहुँचा बैठा नाखून से।

उस दिन जाने कहाँ से एक दैवीय शक्ति समाहित हो गयी थी उसमें, मात्र 14 वर्ष की उम्र में इतनी ताकत कि उस दरिंदे को धक्का देकर भाग गयी और फिर कभी नहीं लौटी।

वह भाग तो आयी मगर जैसे अपनी सारी हिम्मत किताबों के साथ वहीं छोड़ आयी थी, कितने सवाल किये माँ ने मगर रोने के अलावा कोई जवाब नहीं।और बोलती भी क्या ? निशान भी एक ऐसी जगह था कि दिखाया नहीं जा सकता था। जब सर को फोन किया तो उन्होंने उलटे उसी पर बदतमीजी करने का आरोप लगा कर डाँटने को आँसुओं की वजह बता दिया।

उफ़् कितना सुनाया था सबने उसे। उस घटना का प्रभाव इतना गहरा हुआ कि फिर किसी अजनबी की छुअन भी उसे कँपा कर रख देती, न ज्यादा दोस्त और ना कोई प्यार। बस इन ग्यारह वर्षों में कुछ साथ था तो वह एक अनजाना भय, किसी के छूने का डर, जो कुछ इस कदर उसके अंदर समाहित था कि इस बारे में सोचना भी उसको खौफ लाने के लिए काफी था। उसके जिस्म पर उस नाखून के निशान जैसे आज भी नासूर बनकर तरोताजा थे।

यह सब सोच ही रही थी कि अचानक उसे ख्याल आया उस वीरता का जो आज उसने दिखाई थी पड़ोस वाले गुप्ता अंकल को भरे समाज में थप्पड़ जड़कर। वीरता ही तो थी वो, आखिर गुप्ता अंकल गरीब बच्चों को मुफ्त में पढ़ाते थे, उनके नेकदिली के कारण सब सम्मान से उन्हें मास्टर जी बुलाते थे जिनमें राधिका भी थी।

लेकिन यह क्या, आज जब राधिका बड़े चाव से बिन बुलाये उन्हें गाजर का हलुवआ देने गयी तो हलके से खुले हुए अंदर वाले कमरे से रोने की आवाज आयी जिसका का पीछा करते हुए जब उसने वह कमरा खोला तो एक अलग रूप देखा अपने मास्टर जी का । एक भयानक रूप, "मास्टर जी आप यह क्या.." उसे बात पूरी करने की जरूरत ना थी, सब आईने की तरह साफ़ दिखाई दे रहा था। जानें क्या हुआ उसने मास्टर जी को कुर्ते की कॉलर से पकड़ा और उसी हाल में खींच लायी बाहर और सबके सामने एक जोरदार तमाचा जड़ दिया।उसे समझ नहीं आ रहा था कि कहाँ से आयी थी वो हिम्मत, शायद वहीं से जहाँ से ग्यारह साल पहले आयी थी उस भेड़िये को धक्का देते समय, जिसे शायद उसने पीछे छोड़ दिया था उस भेड़िये के कमरे में। मगर आज वह हिम्मत जैसे उसे वापस मिल गयी दूसरे भेड़िये के कमरे में।

वह यह सब सोच ही रही थी कि उसके सोचने को बाऊजी की आवाजसुन विराम लग जाता है।" राधिका बाहर आओ, यह मैंने क्या सुना।" और राधिका अपने आँसू पोंछ कर गर्व से सर उठा निर्भीक होकर दरवाजा खोलती है। आज वह अकेली नहीं थी, उसके साथ उसकी हिम्मत थी।

ये वही हिम्मत थी जिसे ग्यारह साल पहले अपने पीछे छोड़ दिया था, वही हिम्मत जिसे आज लोग बदतमीजी कहते थे। सच तो यह है कि उसने अपना स्वरुप तब ही बदल दिया था मगर उसकी पहचान राधिका को आज हुयी थी।।


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