वाह री किस्मत
वाह री किस्मत
रेलवे लाइनों के पास बसी झुग्गी झोपड़ी से कुछ अर्धनग्न, मासूम बच्चें खेलते-खेलते राह भटक गए और शहर के पॉश एरिया में बसे मॉल के सामने आकर रुक गए। ए. सी. की परिभाषा से सर्वथा अनभिज्ञ सात मालों पर बने मॉल में जिस भी दुकान के आगे रुकते, वहाँ से आती ठंडी हवा से स्वयं को सराबोर करने लगे और एक दूसरे को निहार कर आनंद की अनुभूति में खोने लगे। तभी उनकी नज़र दुकानों के बाहर लगे रंग-बिरंगे खूबसूरत परिधानों में सजी डमी पर पड़ती हैं। वह मुँह खोले, आँखें फाड़े अवाक उन्हें देखते जा रहे थे। कुछ बच्चें उत्सुकतावश उन्हें छूकर देखने का प्रयत्न करते हैं कि खूबसूरत पोशाक पहने यह चेहरे असली हैं या नकली। तभी दुकान का मालिक बाहर आता है और उन्हें डांटते हुए, कहाँ से आए हो, भागो यहाँ से, गंदे हाथों से छूकर सारे कपड़े मैले कर दिए हैं। तुम लोग भी ना नाली के की---- गाली देते-देते रुक जाता है। वाह री किस्मत, जिंदा इंसानों से ज्यादा तूने बुत ही सजा दिए हैं।