परिवर्तन
परिवर्तन
सबसे पहले मैं स्टोरी मिरर कि इस पहल के लिए आभार प्रकट करता हूं।
कभी कभार मेरे मन में अकस्मात सा प्रश्न सा उठ जाता है कि क्या सचमुच में इंसान में इतना व्यस्त हो जाता है कि वो खुद को ही भूल जाए। इंसान की जिंदगी कितनी परिवर्तित हो जाती है कि कभी किसी वक्त जिन अपनों के भविष्य की कामना लिए इंसान अपने भविष्य की रचना करता है वो उनसे ही कितना दूर हो जाता है।
इंसान अपने आप में ही इतना मशगूल हो जाता है कि वो स्वयं को ही भूल जाता है।
कभी जिन लोगों में उसकी जान बसती थी आज उन्ही के लिए वक्त नहीं है। कभी जिन गलियों में उसके दिन गुजरते थे. उनके दर्शन को सालों साल गुजर जाते हैं। कभी जिन मां बाप की नज़रों से इक पल भी ओझल न होने वाला शख्स आज उनसे कोशो दूर है। कैसे इंसान की जिंदगी इस तरह परिवर्तित हो जाती है ?
इंसान जिंदगी को रेस और खुद को उस रेस का घोड़ा समझ के कितना परिवर्तित हो जाता है। कभी जिंदगी को संजीदगी से जी कर देखें तो अपनो का एहसास और पुराने दिनों की याद वापस आ जाएगी।
बस यूँ ही मेरे अपने मन की आवाज।