पहाड़ों का प्यार
पहाड़ों का प्यार
7 जनवरी की रात को हवा जरा तेज़ चल रही थी। अमूमन सर्दियों की ठंडी रातों में इतनी तेज हवा नही चला करती थी। इस ठंडी हवा की शायं शायं ने प्रदीप की नींद को तोड़कर उसे एक ठंड का अहसास दिया। प्रदीप खिड़की खोलकर देखने लगा तो थोड़ी ही देर में आसमान भी बरस पड़ा। पहाड़ों पर बारिश अपने साथ सूखी सर्दी ले जाती है और एक नम बहुत ठण्डा वातावरण। ज़िन्दगी में हुए मौसम के बदलाव की दस्तक को बहुत ही अच्छे से बयां करता है। प्रदीप अपनी खिड़की पर से छोटी नदी पर बने उस पुल को देख रहा था और सोचता ये न होता तो झट से कस्बे के उस रंग बिरंगे बाज़ार कैसे पहुंचता और कैसे पहुंचता पहाड़ी की चोटी पर ले जाने वाले रास्ते पर, जहां से पूरा कस्बा एक झलक में दिख जाता था। सोचते सोचते प्रदीप की आंख लग गयी।
सुबह उठते ही आवाज आई प्रदीप उठ जाओ कॉलेज के लिए देर हो जाएगी उसकी माँ उसे हमेशा इसी तरह जगाती थी। बिना किसी गुस्से, बिना किसी झुंझलाहट के।
प्रदीप दैनिक दिनचर्या पूरी करते हुए पैदल रास्ते पर कॉलेज को चल पड़ता है। ये रोज का रास्ता उसे कभी उबाऊ नहीं लगता। घाटी की सुंदरता उसकी आँखों में सुबह की ठंडी हवा की तरह ताज़गी भर देती।
"अरे ओ ब्लू शर्ट कहाँ देख रहे हो और कहाँ चल रहे हो।" एक मीठी मगर दृढ़ आवाज प्रदीप को पीछे से आई।
"आगे गड्ढा है और उसमे रात की बारिश का पानी तुम्हारा तो नहाना यहीं हो जाता।" इससे पहले की प्रदीप कुछ कहता आवाज चंचल स्वभाव को अपनाते हुए फिर से सुनाई दी। "हहह हाँ थोड़ा ध्यान कहीं और था शुक्रिया।"
"आर्ट्स में तो देखा नहीं साइंस से हो क्या ?" "जी हां।"
"ओह तभी तुम साइंस वाले न जाने कहाँ खोये रहते हो।" लड़की ने कॉंफिडेंट होकर कहा। इस बार प्रदीप ने उसे अच्छे से देखा। मनमौजी स्वभाव रेशम जैसे हल्के काले भूरे बाल, कान में सुनहरे रंग की बालियां, एक सुंदर सी लड़की।
"वैसे मैं यहाँ पर 1 महीने पहले ही आयी हूँ पर मैं जहां जाती हूँ मैं वहां की हो जाती हूँ ...तुम कम ही बोलते हो या अभी भी ध्यान कहीं और है।" लड़की ने स्वतंत्र भाव से कहा।
"नही बोलता तो हूँ पर आपसे कम बाय द वे में प्रदीप।" "मैं काजल" लड़की ने लपककर कहा।
इतनी बातों में ही कब कॉलेज के कैंपस तक पहुंच गए प्रदीप को पता ही नहीं चला। ओर शायद ये भी नहीं पता चला कि वो काजल को दिल दे बैठा है। धीरे धीरे अनजानी मुलाकात दोस्ती और फिर प्यार में बदल गयी दोनों ने मोहन कैफ़े की कॉफी का लुफ्त लेने की बहाने घण्टों वहाँ बिताये थे। शाम को पहाड़ी पर जाना, पुल पर से नदी के बहाव को देखना, एक रोजाना दिनचर्या का हिस्सा बन गया था। ये प्यार का पहला पहला परवान था। पहाड़ों पर प्यार भी पहाड़ों की तरह ही सुंदर और विशाल होता है और हिमालय से बर्फ की तरह धीरे धीरे पिघलकर नदी की तरह उफान मारते हुए चलता है।
आज प्रदीप का फाइनल ईयर का आखरी एग्जाम था। काजल के एग्जाम दो दिन पहले खत्म हो चुके थे। दोनों ने एग्जाम खत्म होने के बाद ही मिलने का वादा किया था। दोनों कस्बे के बीच बने पुल पर से सामने के पहाड़ को देख रहे थे। कैसे 2 घंटे पहले जब धूप थी वो चमक रहा था। प्रदीप किताबों में पढ़ा था, फ्रांस में प्यार करने वाले लोग पुल पर ताला लगाते हैं। प्यार की निशानी के लिए उस चंचल सी लड़की मैं आज एक ठहराव था। अपनी बात को जारी रखते हुए काजल ने कहा- मैं भी एक ताला लायी हूँ प्रदीप जो हम इस पल की रेलिंग पर ऊपर लगाएंगे, हमारे प्यार की निशानी, पहली बार हम इसी पुल पर मिले थे। अब वो गड्ढा भी भर दिया गया है जिसमें बारिश का पानी जमा हुआ करता था।
"अरे पर हम कहाँ जुदा हो रहे हैं।" प्रदीप ने बेपरवाह अंदाज़ से कहा।
"मैं कह सुबह की बस से दिल्ली जा रही हूं, पापा कोचिंग करवाना चाहते हैं।" काजल ने घुटते गले से कहा।
"पर तुमने बताया क्यूं नही ऐसे कैसे अचानक" प्रदीप कुछ दर्द से बोला "मौका ही नही मिला 1 महीने एग्जाम के दौरान ही डिसिजन लिया।"
"पर एकदम कैसे" इतना कहते ही प्रदीप खुद को रोक लेता है शायद वो काजल की मजबूरी समझ लेता है। काजल और प्रदीप पुल पर बनी रेलिंग पर ताला लगाते हैं और प्रदीप धीरे से से चाबी को पुल के ऊपर से पानी की ओर छोड़ता है।
"तो क्या हम कभी नहीं मिलेंगे।" प्रदीप बहते हुए पानी की ओर देखकर कहता है।
"मैं तुमसे वादा तो नहीं करती पर इतना कहती हूँ मेरा इंतज़ार करना, ये पहाड़ हमें फिर मिलाएंगे भरोसा रखो और ये ताला हमेशा हमारे प्यार की शुरुआत की निशानी बनकर रहेगा।"
बरसात को मौसम अभी खत्म हुआ है और ठंड बड़ी तेज से दस्तक दे रही है। आज रात फिर से ठंडी हवाएं चल रही हैं। प्रदीप की नींद हवाओं की शायं शायं तोड़ चुकी है। प्रदीप खिड़की से छोटी नदी पर बने उस पुल को देखता है। ताले की चमक इन 3 सालों में कम हो गयी है पर उसे भरोसा है उस निर्जीव पुल की रेलिंग से लटके ताले पर।