पहाड़ों की ऊँचाई से
पहाड़ों की ऊँचाई से


दादी की 86 बरस की बूढ़ी आंखों में आज कुछ चमक सी थी। दादी का एक लड़का बचनु था जिसकी ब्वारी ( बहू ) सुनीता को शाम के दूसरी पहर प्रसव पीड़ा होनी शुरु हो गयी थी। वैसे तो घर में एक नाती (पोता) पहले से ही था पर दादी को नातनी( पोती) की बहुत चाह थी। दादी नातनी का रिश्ता भी अलग ही हुआ बुढ़ापे में दादी की दोस्त नातनी ही बनती है।
दादी ब्वारी का पूरा ख्याल रख रही थी। ब्वारी की एक आवाज़ पर दादी आंगन से चटपट दौड़ कर आ जाती। शाम ढलने तक सबकुछ ठीक चल रहा था। वैसे तो ज्यादातर बच्चे गांव की दाइयों के हाथों ही सकुशल जन्म लेते थे पर शाम 7 बजे से मामला बिगड़ता जा रहा था।
8 बजे हॉस्पिटल ले जाने की ठानी गयी।
बेसिक हॉस्पिटल 6 km पैदल दूरी पर था। रात को कुर्सी पर डंडे बांध कर स्ट्रेचर बनाया गया। स्ट्रेचर ले जाने के लिए 3 लोग तैयार किये और एक बचनु खुद।
घर से चले 1 घंटे के करीब हुआ था 5km की पहाड़ी उतराई उतरते हुए अब 1 km सीधा रास्ता बचा था। बचनु भी बार बार जल्दी चलने को चिल्लाता।
हॉस्पिटल पहुचने पर वहाँ मौजूद एक कंपोडर और नर्स ने हालात की गंभीरता समझते हुए जिला अस्पताल रेफर कर दिया। जिला अस्पताल 45 km दूर था। गांव के किसी ड्राइवर को फ़ोन कर बुलाया गया। रात का वक्त पहाड़ी रास्ता, खराब सड़क होने से जिला अस्पताल पहुंचने में 2 घण्टे लग गये।
12 बजे रात गाड़ी जिला अस्पताल पहुंची। वहाँ उसे तुरंत emergency वार्ड में ले जाया गया।
जिला अस्पताल वालों ने प्राथमिक इलाज करने के बाद एम्बुलेन्स मुहैया करवा हायर सेंटर मेडिकल कॉलेज जो 80 km दूर था रेफर कर दिया। उधर गांव में दादी भैसों को घास डालकर नाती को रोटी खिलाकर बिस्तर पर बैठी हुई थी दरवाज़े बंद कर दिये थे दादी ऐसे मौकों प
र अति सावधान रहती थी बाघ सुअर का भी गांव में आतंक चल रहा था। एक फ़ोन था घर में वो भी बचनु साथ ले गया अब हालचाल जानने का भी कोई साधन नही था।
3 बजे सुनीता को बड़े अस्पताल में भर्ती कराया गया। उसकी आँखें पथरा चुकी थीं पर दर्द बेहोश होने नहीं दे रहा था। बचनु इधर से उधर घूम रहा था उसे तब अहसास हुआ कि वह इस ठंड में सिर्फ एक स्वेटर् के साथ ही आ गया। बचनु और उसके साथ आये लोगों ने चाय पीने का फैसला किया वो बचनु को दिलासा दे रहे थे कि अब सब ठीक होगा बड़े हॉस्पिटल पहुंच गए हैं।
2 घण्टे बीत गए हैं बचनु और सुनीता का ब्लड ग्रुप एक ही था सो सुनीता को बचनु का खून ही चढ़ाया जा रहा था ।
इधर दादी ने सुबह 2 टाइम की चाय पी ली थी उजाला हो चला था। दादी भैसों से दूध निकालकर नाती के लिए दूध गर्म कर रही थी आज दादी का मन किसी काम में नही लग रहा था। दादी ने गांव के एक लड़के को वहां से गुजरते देखा तो अपने लड़के बचनु को फ़ोन करने के लिए कहा। लड़के ने बचनु को फोन मिलाया पर बचनु ने फ़ोन उठाया नहीं तो साथ में गये रमेश को फ़ोन किया गया।
दादी किसी खुशखबरी की आस में फोन की तरफ देखती रही थी दादी ने स्पीकर पर लगे फोन से आवाज़ सुन ली थी।
दादी ने बड़ी धूम धाम से बचनु की शादी की थी बहू भी सर्वगुण संपन्न और बहुत ही सुंदर थी। दादी बहू को बेटी ही मानती थी क्योंकि दादा के जाने के 15 वर्ष बाद बहू के आने से ही घर में रौनक आयी थी। सुनीता और उसके बच्चे दोनों की ही मौत हो गयी थी।
दादी के होंठ अचानक ही सूख गये थे 86 बरस देख चुकी बूढ़ी आंखों में अब आँसू भी नही बचे थे। दादी कुछ न बोल पायी न रो पायी बस नाती को गले से लगाकर बैठी देखती रही आकाश को शायद दादा बुला रहे थे।