खेलोगे कूदोगे तो ...
खेलोगे कूदोगे तो ...
शाम को सोमेश के दफ्तर से आते ही उनका बेटा सौम्य उनके पैर छूकर गले से लिपटता हुए बोला, "पापा मैं स्कूल फुटबॉल टीम का कप्तान बना दिया गया हूँ"।
सोमेश प्यार से उसके बालों पर हाथ फिराते हुए, "मेरा बेटा खेलता ही इतना अच्छा है । चलो फिर श्रीमती जी आज इसी खुशी में पार्टी की जाए", सोमेश अपनी पत्नी को आवाज लगाते हुए बोले ।
सौम्य बोला, "नहीं पापा अभी नहीं। पहले मुझे कप्तान के तौर पर स्कूल स्तर पर राज्य प्रतियोगिता जीत लेने दीजिए, फिर पार्टी होगी"।
"नहीं बेटा खुश होने के लिए बड़ी खुशियों का इंतजार नहीं करना चाहिए। छोटी-छोटी खुशियों को समेटते रहना चाहिए। क्यों श्रीमती जी सही कहा न", सोमेश अपनी पत्नी को देखते हुए बोले।
"ओके पापा ! जैसा आप चाहे। वैसे मुझे ज्यादा अच्छा लगता कि मैं कम से कम कुछ मैच जीत जाता, फिर मुझे पार्टी मिलती", सौम्य ने कंधे उचकाते हुए कहा।
तब से सौम्य के दादा-दादी बाहर से आते हुए बोले, "भाई कौन दे रहा है पार्टी ? किसको पार्टी दी जा रही है"?
सौम्या खुशी से चहकते हुए बोला, "दादी, दादू ! पापा पार्टी दे रहे है मेरे कप्तान बनने की खुशी में। दादू मैं अपने स्कूल फुटबॉल टीम का कप्तान बना दिया गया हूँ"।
दादी ने मुस्कुराते हुए बहुत प्यार और गर्व से देखा। पर दादा जी मुँह बिचकाते हुए बोले, "खेलोगे कूदोगे तो होगे खराब, पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब"। अरे कुछ करना ही था तो क्लास में टाप करता। बिना मतलब खेल के पीछे पागल है"।
सोमेश बोले, "नहीं पापा ! मेरा बेटा अपने सपनों को जिएगा। अब वो जमाना नहीं है। "अब तो पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे तो बढ़ेगा रूआब" का ज़माना है। कल किसने देखा है ? मैं उसका भविष्य तो निर्धारित नहीं कर सकता । पर यह सुनिश्चित करूँगा कि उसका वर्तमान खूबसूरत हो। वह जिए, खुलकर जिए अपने सपनों के साथ। वह अपने सपनों के पीछे भागे। भले ही उसके सपने किसी भी दिशा में हो । एक उम्र के बाद तो कमाना खाना ही रह जाता है"।
दादा जी बोले, "तू मुझे ताने मार रहा है कि मैंने तुझे खेलने नहीं दिया। तुझे तेरे सपनो को पूरा करने का मौका नही दिया"।
सुमेश अपने पापा के हाथों को पकड़ते हुए बोले, "नहीं पापा तब आपने वही किया जो तब के हिसाब से सही था। क्या मैं नहीं जानता आप खुद एक बढ़िया खिलाड़ी थे। आपने भी तो अपने सपनों की आहूति दी थी"।
सौम्य बोला, "दादू ! आप भी....आपने कभी बताया भी नहीं। दादू आप क्या खेलते थे"?
दादा जी बोले, मेरा तो छोड़ो तुम्हारी दादी मैराथन जीत चुकी है, उस जमाने में"।सौम्य तो आश्चर्य से आँखें फाड़ कर दादी को देखता रह गया।
सोमेश बोले, "तो आज से सौम्य की ट्रेनिंग की जिम्मेदारी दादू दादी की है। दादी सुबह सौम्य के साथ दौड़ने जाएंगी और दादू शाम को सौम्य के साथ प्रैक्टिस (तैयारी) करेंगे"।
दादू बोले, "अरे वाह ! ऐसा क्यों, मैं भी सुबह दौड़ने जाऊँगा"।
दादी बोलीं, "वैसे हमनें तुमको बताया नहीं पर हम दोनों पहले से ही इस साल छब्बीस जनवरी को होने वाली मैराथन में भाग लेने की योजना बना रहे हैं"।
सौम्य की मम्मी बोली,"वाओ (वाह) ! यह तो बहुत अच्छी बात है। फिर तो हम पाँचों ही तैयारी करेंगे और मैराथन में भाग लेंगे"।
"और जीतेंगे भी",सौम्य, उसके पापा और दादी एक दूसरे को हाई फाइव देते हुए बोले।
दादाजी बोले, "देखो मेरा मानना है कि खेल को हमेशा खेल की भावना से खेलना चाहिए। खेल भावना का मतलब अपनी खुशी के लिए खेलना चाहिए। आप अपने मन की खुशी के लिए अपने सर्वोत्तम रूप में खेलें, जीत हार की भावना से नहीं"।
दादी मुस्कुराते हुए दादाजी को देखते हुए बोलीं, "जमाना बदल गया है, जमाने के साथ लोगों का दृष्टिकोण भी। चलो फिर इसी बात पर पार्टी तो बनती है"।
उम्र कोई भी हो अपने अंदर के बच्चे और शौक को जीवित रखें। खेलते रहे यह शारीरिक स्वास्थ्य के लिए तो आवश्यक है ही मानसिक स्वास्थ्य के लिये भी अत्यंत आवश्यक है।
