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ratan rathore

Drama Tragedy

2.5  

ratan rathore

Drama Tragedy

खुली हवा

खुली हवा

2 mins
499


कदम सहसा ही थम गए। कुत्ते के पाँच सात नवजात बच्चे अपनी माँ से दौड़-भाग करते हुए सुबह की ताजी हवा में अठखेलियाँ कर रहे थे। सभी की तरह यह माँ भी अपने शिशुओं को जीवन जीना और विषम परिस्थितियों से लड़ना सिखा रही थी।

"अजी क्या देख रहे हैं श्यामलाल जी ? सैर पूरी नहीं करेंगे ?" सहसा वे एक आवाज से चौकें।

"जी..जी..क्यों नहीं करेंगे हरी प्रसाद जी। आज इन पिल्लों की वजह से रौनक आ गई" उन्होंने हँसते हुए मित्र से कहा।

"जीवन के दाँव-पेच सभी जानवर अपने बच्चों को सिखाते हैं...और यह पिल्ले बड़े होकर वफादार कुत्ते बनेंगे" प्रातः कालीन सैर मित्र ने कहा और वे पुनः चल पड़े।

चार चक्कर लगाने और थोड़ा सुस्ताने के बाद वे घर लौट आये। हमेशा की तरह अखबार की खबरों को पीने लगे। हर खबर की तरह उनके चेहरे के भाव और प्रतिक्रियाएँ मौसम के अनुकूल बदलती रहती थी। उनकी यह बात श्रीमती शकुंतला भी अच्छी तरह से समझती थी। वे भी उनके साथ चाय पीते हुए उन बनती बिगड़ती भाव-भंगिमाओं को पढ़ लेते थी।

"बहुत गौर से देख रही हूँ कि आज आपके भाव पल पल तेजी से बदल रहे है। क्या कुछ विशेष समाचार है ?"

"क्या बताऊँ श्रीमती जी। रिश्ते, रिश्ते नहीं रहे। पालनहार रिश्तेदार नहीं रहे। शिक्षकों का भी शिष्यों के प्रति चारित्रिक पतन हो गया है। सब कुछ दाँव पर लग गया है। नैतिकता, चरित्र तार-तार हो गए है। अब अखबार वाले छापे भी तो आखिर क्या छापे ?" अपना सिर पकड़कर बैठ गए श्यामलाल जी।

"हाँ, यह तो है। सही कह रहे हैं। कल ही आप बता रहे थे कि 'मीटू' का नया भूत आया है। पुरानी कब्रों से निकल कर सब को सत्ता रहा है। अनेक लोगों के चेहरे काले पोत दिए गए।" कप की चाय को एक सांस में गड़कते हुए शकुंतला देवी ने कहा।

"इससे तो जानवरों की शिक्षा और चरित्र अच्छा है। कुत्ता वफादार तो है। जानवर मज़े के लिए शिकार नहीं करते। इंसान, इंसान को छल रहा है। झूठ, फरेब, सच्चाई, ईमानदारी सब गुत्थम गुत्था हो गए है।" खीज प्रकट करते हुए बोले।

"समय रहते सुधर जाना चाहिए इंसान को। परसों दीपिका मिली थी सब्जी मंडी में। कह रही थी कि उसे भी मीटू का हिस्सा बनना है।"

पसीने से तरबतर श्यामलाल जी खुली हवा में सांस लेने के लिए घर से बाहर निकल आए।


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