'रिश्ते' एक खट्टा मीठा अनुभव
'रिश्ते' एक खट्टा मीठा अनुभव
जब बच्चा पैदा होता है तब रिश्तों से घिर जाता है। सब उसे प्यारा सा नाम देते हैं। उसके जन्म लेने से ही मामा-मामी, चाचा-चाची, ताऊ-ताई, भाई-बहन माँ-बाप कितने रिश्ते जुड़ जाते हैं।
हर रिश्ते की अपनी सुखद अनुभूति है, अच्छे बुरे कई दौर से गुज़रते हैं ये रिश्ते।
जब एक लड़की की शादी होती है तो वह कई नए रिश्तों से जुड़ जाती है। जेठानी-देवरानी, सास-ससुर, पति, देवर-जेठ, नए रिश्तों से जुड़ना समाज का नियम है। इन नियमों के दायरे में हम समाज से जुड़ते हैं।
माँ-बेटी का रिश्ता सबसे प्यारा व अनूठा है। दोनों अपने दिल की हर बात बिना किसी लाग-लपेट के बाँटती हैं। यह निःस्वार्थ रिश्ते का मज़बूत बंधन है।
पति-पत्नी के रिश्ते में दो अनजान लोग एक पवित्र बंधन में बांध जाते हैं और हर सुख-दुःख के साथी होते हैं। अपने जीवन का हर पल साथ गुज़ारते हैं। दोनों का रिश्ता जन्म-जन्मांतर का माना जाता है।
वहीं माँ-बेटे का रिश्ता कितना ख़ूबसूरत होता है। बेटा जब बड़ा होता है, माँ अपनी भूमिका ज़िम्मेदारी से निभाती है। अपने बेटे को बड़ा करने में अपना हर क्षण समर्पित करती है। उसके लिए अपनी इच्छाओं को भी दबा देती है। जो उसे पसंद, वही माँ को पसंद।
रिश्तें तो बहुत हैं, इनको जितनी गहराई से देखा जाए, इनकी ख़ूबसूरती व बदसूरती दिखाई देती जाती है। रिश्ते कभी मीठे तो कभी खट्टे।'
जीवन बड़ा अनमोल है, रिश्तों को बिखरने मत दें बन्दे,
बड़ा अनमोल खज़ाना है, जितना हो समेट लें। '
हमारे बड़े छोटों से रिश्ते सुखद हो इसके लिए हमारी भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण है क्योकि जितना इसकी डोर को पकड़ सको मज़बूती से उतना ही रिश्ता मीठा रहेगा।
जीवन में सुख-दुःख, हार-जीत, ऊँचाई-निचाई कई पहलु हैं, उन्हें अपने ढंग से अच्छे रिश्तों में बाँधना व निभाना ही जीवन की सच्चाई।
'अपनी कोशिश को कभी कम न कर बन्दे
तलाश कर अपनी ख़ूबसूरत पहचान को
एहसास अच्छे रिश्तों के दिल में जगा के रख।