मित्रता
मित्रता
मित्रता बड़ा ही प्यारा शब्द है, सुनने में भी व निभाने में भी। मित्रता की कोई परिभाषा नहीं है, इसको शब्दों में बाँधा नहीं जा सकता। सच्चा मित्र एक दवा की तरह है जो हमेशा असरदार होता है।
बचपन की मित्रता, जवानी की मित्रता, बुढ़ापे की मित्रता- हर उम्र में मित्र की आवश्यकता वैसे ही ज़रूरी है जैसे वातावरण में हवा की।
मित्र हमें हमेशा सही राह दिखाता है, सुख दुःख में साथ निभाता है। कृष्ण और सुदामा, अर्जुन और कृष्ण, विभीषण और सुग्रीव की राम से मित्रता- ये मित्रता के अनोखे उदाहरण हैं।
मित्र को सुख दुःख का सहभागी माना गया है। एक अच्छे मित्र की पहचान विपत्ति में ही की जा सकती है। तुलसीदास ने भी मित्र की परीक्षा आपत्ति काल में ही बताई है- 'धीरज धरम मित्र अरु नारी, आपद्कालि परखिए चारि।'
जीवन में अच्छा मित्र मिलना, सागर में मोती मिलने के बराबर है। लोग तो बहुत मिल जाते हैं पर उनमे से मित्र मिलना बहुत कठिन है और जब वह मिल जाता है तो जीवन के अँधेरे में रौशनी मिल जाती है।
भगवान कृष्ण ने सुदामा को गरीब हो कर भी अपनाया एवं सच्चे दिल से उ
सकी मित्रता को स्वीकार किया। कृष्ण भगवान ने अर्जुन को दोस्ती में उच्च स्थान दिया, हमेशा उनका साथ निभाया, महाभारत में अर्जुन के रथ के सारथी बने तथा उनको जीवन के उज्जवल पक्ष की ओर ले जाने का अथक प्रयास किया। महाभारत युद्ध बिना कृष्ण के जीतना असंभव था।
विभीषण रावण के भाई होते हुए भी रावण का विरोध कर के राम के सच्चे मित्र बने। राम रावण के युद्ध में उन्होंने श्री राम का सच्चा साथ निभाया और दोस्ती की अदभुत मिसाल कायम की।
"निभाया रिश्ता दोस्ती का जिसने, वो रब के करीब है,
रब भी उसको नवाज़ता है अपनी कृपा दृष्टि से। "
हमेशा अपने मित्रों को सहयोग व प्रेम दें, धोखा दे कर मूर्ख न बनाएँ। दोस्ती बहुत ही नाज़ुक व दिलवाला रिश्ता है, इसे सच्चे मन से निभायें।
रहीम दास जी ने बहुत ही खूबसूरती से कहा है ,
"रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाए,
टूटे से फिर न जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाए। "
दोस्तों, अपने मित्रों को धर्म, जात-पात व पैसे से न तोलें, दिल से दोस्त को अपनायें एवं हमेशा सच्चाई बनाये रखे।