दीवारों की जुबान
दीवारों की जुबान
"एे बीच वाली बहिन, कुछ कहो न आज, खामोश कैसी हो ?" कमरे की बड़ी दीवार ने बीच वाली से मुस्काराते हुए पूछा, क्योंकि आजकल वह कुछ उदास-सी प्रतीत होती थी, क्योंकि वह छोटी थी या फिर तजुर्बा कम था ।
"कुछ नहीं जीजी, आजकल मन थोड़ा उदास सा रहता हैं, भाग जाने को दिल करता हैं।'
"अरे, क्यों ?"
"कहने को तो इस घर में कितने सदस्य हैं, मगर सब बिल्कुल खामोश रहते हैं, बिल्कुल हमारी तरह।"
"री, हमसे तुलना क्यों कर रही है, हम बोलते नहीं क्या ?" बड़ी दीवार ने क्रोध मिश्रित स्वर में कहा।"
"अं, हाँ-हाँ हम तो बोलते हैं, मगर इन, इन इंसानों को देखो न, कैसे एक घर के नीचे रहकर भी अजनबी से बने रहते हैं !"
मझली ने परेशान होते हूए कहा।
"यह आपस में क्या बोलेंगे, इनके पास गैजेटस हैं न !
आओ हम बतियायें कुछ, अपनी कहें और सुनायें।"
बड़ी ने समझाया तो सभी जोर-जोर से हँसने लगीं ।"