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Neerja Sharma

Tragedy

3  

Neerja Sharma

Tragedy

बूढ़ी काकी

बूढ़ी काकी

3 mins
223


इस मुहल्ले में आए अभी कुछ ही दिन हुए थे ।अभी लोगों से ठीक तरह से जान पहचान भी नहीं थी। अकेला था परिवार अभी शिफ्ट नहीं किया था, इसलिए ज्यादा किसी से बात भी नहीं होती थी। बस एक ही चीज बार-बार खलती थी और वह थी पड़ोस वाले घर से किसी के रोने की आवाज।   दिन तो ऑफिस में कट जाता था पर शाम को जब घर आता था तो हर थोड़ी देर के बाद उस घर से मुझे किसी के चीखने रोने की आवाज आती थी । नया था तो यह भी अच्छा नहीं लगता था कि जा करके पता कर लूँ।

एक दिन आफिस के लिए घर से निकला पाप के घर से शर्मा जी भी निकल आए । उनसे एक दोबार बात हो चुकी थी और थोड़ी सी बातचीत के बाद ही मुझसे रहा नहीं गया । मैंने उनसे बात पूछी कि जो साथ वाला घर है उसमें ऐसा क्या है कि हमेशा किसी के जोर से रोने की आवाज आती है। मेरी बात सुनते हैं शर्मा जी एकदम बोले "क्या करोगे जानकर यह तो उस बेचारी बुढ़िया के कर्मों का फल है । बेचारी ने अपना सब कुछ बेटे के नाम कर दिया और अब किस्मत की ऐसी मारी है कि ना बेटा पूछता है ना बहू । यहाँ तक कि बच्चे भी नहीं सुनते हैं । बेचारी वह सारा दिन हर चीज के लिए तरसती रहती है । शुरू -शुरू में हमने एक दो बार उसे समझाने की कोशिश की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ । उसकी बदतमीजी यहाँ तक कि यह भी कह डाला ," अगर आपको ज्यादा तरस आता है तो ले जाइए अपने घर " । एक पोती है जो परिवार से छुपकर दादी को प्यार करती है । अब तो राम ही रखा है उस बेचारी का । जब तक पैसा था, जायदाद थी तब तक तो बच्चे आगे पीछे घूमते थे और जिस दिन उनके नाम उसने सब किया तो बेचारी न घर की रही ना घाट की। कोई भी उसे पूछने वाला नहीं है।" इतने में ही शर्मा जी को दूसरी तरफ जाना था और वह मुड़ गए ।

मैं सोच में डूब गया कि आज के युग में भी ऐसा होता होगा । क्या कोई अपनी माँ के साथ ऐसा व्यवहार कैसे कर सकता है ।ऑफिस पहुँच गया लेकिन बिल्कुल भी मन नहीं लग रहा था। दिल कर रहा था कि जाकर उसे मैं कुछ समझा दूँ। बड़े बेमन से बस सारा दिन ऑफिस का काटा । घर आया तो सोचा कि उनके घर जा ही आऊँ, लेकिन फिर शर्मा जी की बात याद आई तो मन मसोसकर रह गया ।एकदम से प्रेमचंद जी के कहानी बूढ़ी काकी की याद आ गई जिस बेचारी ने अपने जिंदगी के अंतिम समय में इतना कष्ट सहा । शायद ही कोई इंसान ऐसा कष्ट सह सकता होगा। बेटा बहू की तो छोड़ो उनके बच्चे भी तक उनसे बुरा इतना व्यवहार करते थे।

आज के युग में ऐसा व्यवहार सोचकर रुह काँप गई । सोचने लगा कि क्या ऐसे दिनों के लिए माँ-बाप बच्चों की लम्बी उम्र की दुआ करते हैं। ऐसे बेटे से तो निसंतान मरना बेहतर है। दुखी मन से मैंने घर बदलने का निर्णय ले लिया।



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