Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

अपने मन की

अपने मन की

7 mins
808


आज पार्क में कोई भी नहीं आया। पता नहीं क्या क्या। कहीं कोई वारदात तो नहीं हो गई। आजकल कुछ कहा नहीं जा सकता कि पता नहीं कहां कोई हिंसात्मक घटना न हो जाए। मैं अकेला ही पहुंचा था। रिटायरमेंट के बाद हमारा एक ग्रुप बन गया था, जिसके सदस्य सुबह शाम दोनों समय मिलकर गपशप करते और पार्क के पास चाय की दुकान पर चाय पीकर अपने अपने घरों को प्रस्थान कर जाते हैं। यह ग्रुप का नियमित कार्यक्रम बन गया था। मैंने कुछ देर तक प्रतीक्षा करने की सोची। कोई नहीं आएगा तो लौट जाऊँगा। पार्क के बेंच पर बैठे बैठे पुरानी बातें याद आने लगी।

नैनीताल में हमारा घर था। बारिश के मौसम में ताल के ऊपर कोहरा छाया रहता था। मुझे कोहरा का इस तरह से ताल के ऊपर घूमना बहुत अच्छा लगता है। कोहरे का इधर से उधर आना जाना देखना मेरा शौक बन गया था। कई बार मेरा पूरा दिन कोहरा देखने में बीतता। अचानक मुझे पूरन की याद आ गयी। मेरे साथ कॉलेज में पढ़ता था। उसके दोनों भाई अमेरिका में बस गए थे। वह जनाब अक्सर कहते कि मुझे पढ़ने के बाद अमेरिका जाना है। जब तक माँ है, उसके साथ रहूँगा। पूरन को आंचल बहुत अच्छी लगती थी। उसी की कक्षा में पढ़ती थी। पूरन अक्सर उसका पीछा करता था। एक दिन पूरन और मैं साथ साथ घूम रहे थे कि सामने से आंचल आ रही थी। पता नहीं कि पूरन को क्या हुआ कि उसने आंचल का हाथ पकड़कर बोला, “ मैं तुम्हें प्यार करता हूं और तुमसे शादी करना चाहता हूं।”

आंचल हाथ छुड़ाते हुए जोर से बोली, “ कभी देखी है शक्ल आईने में। बन्दर कहीं का।"

पूरन गुस्से में तमतमा गया, “मैं तुझे अमेरिका ले जाता मगर तेरे भाग्य में यहीं सड़ना है।"

इतना कहकर उसने आंचल को धक्का दिया। आंचल गिरते गिरते बची। किसी तरह मैं बीच बचाव करके पूरन को अपने साथ ले गया। रास्ते भर पता नहीं वह क्या क्या अजूल फिजूल बोलता रहा। लगता था कि उसे आंचल ऐसी उम्मीद नहीं थी। नैनीताल छोटी जगह है। लोग एक दूसरे को पहचान है। हो सकता है कि आंचल पूरन को जानती हो या उसे पूरन का तरीका पसंद न आया हो।

अगले दिन पूरन का आंचल के भाईयों से झगड़ा हो गया। वे अपनी बहन का बदला लेने को आतुर थे। हल्की मार पीट या धक्का मुक्की हुयी थी। खैर मित्रों के हस्तक्षेप से मामला शांत हुआ। इसके बाद पूरन ने कभी आंचल का पीछा नहीं किया।

इस घटनाक्रम का प्रभाव मुझ पर भी पड़ा। एक लड़की स्कूल बस से आती थी। वह दस बजे से शाम चार बजे तक रहती थी। मैं सुबह से ही उसकी प्रतीक्षा करने लगता था। उसे देखने लगता। यहीं क्रम मेरा सांयकाल का भी हो गया था। शायद उसे भी इसका अंदाजा हो गया था। एक दिन मेरे दोस्त ने बताया कि उसकी बड़ी बहन बहुत ख़तरनाक है। सीधे चप्पलें बरसाती है। परिणाम यह हुआ कि मैंने उस लड़की को देखना छोड़ दिया।

यादें आती रहती है। व्यक्ति जब तन्हाई में होता है तो उसे अतीत की बातें याद आने लगती है। इधर हाल में मेरे दो मित्रों के निधन का समाचार मिला। प्रकाश और एक और मित्र भुवन ने प्रेम विवाह किया था। प्रकाश के घर वालों ने विवाह के लिए स्वीकृति दे दी थी मगर भुवन के परिवार के लोगों ने उससे सम्बन्ध तोड़ कर उसे घर से बाहर निकाल दिया था। दोनों की पत्नियाँ नौकरी करती थी इसलिए उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा। उन दोनों ने अपने मन से निर्णय लिया था। हमारे जमाने में प्रेम विवाह करना अत्यधिक साहस का काम माना जाता था। अनिल बहुत डींगे मारता था। लड़कियों के किस्से सुनाता रहता था मगर कोई भी लड़की उसे नहीं मिली। आखिरकार उसने घरवालों की पसंद को ही अपनी पसंद मान लिया।

गोविंद और जीवन भी दोस्त थे। जीवन अजीब किस्म का इंसान था। कक्षा में अध्यापकों से अजीब किस्म के प्रश्न पूछता था, वह अपना सायंकालीन समय दोस्तों के साथ न गुजार के मन्दिर में बैठे साधुओं के साथ व्यतीत करता था। उसे लड़कियों से कोई मतलब नहीं था। एक दिन मेरे आँफिस में आया और एक फूल देकर बोला, “ तुम्हारा कल्याण हो।"

मैंने पूछा, “ कहां हो। कैसे हो।"

उसने मेरी बात पूरी नहीं होने दी और बोला , “यहां पास में मेरी गुफा है। तुम अवश्य आना।”

इतना कहकर वो चला गया। पता चला कि वह साधु बन गया था।

गोविन्द नौकरी पा गया था। अनुभा से विवाह करना चाहता था मगर बहन की शादी होनी थी। पिता थे नहीं, बड़े भाई ने स्पष्ट कहा कि जब तक मीता का विवाह नहीं हो होता तब तक विवाह का नाम मत लेना। बाद में पता चला कि मीता की शादी इस शर्त पर हुयी कि मीता के होने वाले पति की बहन का विवाह गोविन्द से किया जाए। सीधा अर्थ अदला-बदली। बड़े भाई ने कहा-गोविन्द तुम्हें इस लड़की से शादी करनी है। गोविन्द को मन मारकर मंडप में बैठना पड़ा।

शुभा एक खूबसूरत लड़की थी। सुभाष उससे विवाह करना चाहता था। इससे पहले कि वह अपनी बात शुभा से कर पाता, वह डोली में बैठकर विदा हो गयी। बेचारा सुभाष। अच्छी नौकरी में था मगर बात कर करने में देरी कर दी।

अकेले बैठना बड़ी बोरियत का काम है। केवल ख्यालों में डूबे रहो। खैर मेरी नौकरी मैदानी क्षेत्र में लगी तो नैनीताल छूट गया। शुरू शुरू में तो नैनीताल आना जाना लगा रहता था मगर एक बार घर बसा लो तो सब कुछ चार दीवारी तक सिमट जाता है मेरे दो बच्चे है। दोनों बच्चे अपनी अपनी जिंदगी में व्यस्त हैं। वैसे भी यह ज़माना ऐसा है कि व्यक्ति आधुनिक उपकरणों के साथ व्यस्त हो गया है। यदि मैं आज तन्हा महसूस कर रहा हूं तो कौन सी अलग बात है। घर के अंदर भी तन्हाई का एहसास होता है। सब अपने अपने में व्यस्त हैं। कोई मोबाइल में, कोई नेट में, कोई फेसबुक, टीवी में। कितनी बदल गई है ज़िन्दगी।

सोचा था कि रिटायरमेंट के बाद पहाड़ों में जाकर रहूँगा। शान्त वातावरण में। घर वालों के आगे नहीं चली। उनके तर्क से मैं हार गया और एक फ्लैट ख़रीद लिया। बस अब यह पार्क और घर ही लगता है कि सबकुछ है।

अचानक एक दिन पूरन से मुलाकात हो गयी थी। मैंने मज़ाक में कहा, “ उस लड़की के क्या हाल है। पता तो तूने अवश्य किया होगा।"

पूरन ने कहा, “ यहीं बर्तन मल रही है। चार बच्चों की माँ है। भाग्य में अमेरिका जाना था ही नहीं।"

हम दोनों पुरानी यादों को लेकर बहुत देर तक हंसते रहे।

एकाएक पूरन ने पूछा, “ तेरी बस वाली क्या हुआ।"

मैंने कहा, “मुझे तो कभी दिखी नहीं। यहीं कहीं रहती है सुना।"

खैर बातें आयी गयी हो गयी।

यादें तो ढेर सारी है। दशहरे के दिनो में हम दोस्त लोग रामलीला देखने के बहाने घर से बाहर रहते। उद्देश्य था मदिरा पान। थोड़े थोड़े पैसे इकट्ठे करके बोतल ख़रीद कर पीने का जो आनन्द था वो आज सामने रखी बोतल में नहीं है। एक बार सबने मिलकर एक बियर की बोतल खरीदी और उससे घूंट लगाने को लेकर छीना झपटी क्या हुई कि गोविन्द का दाँत टूट गया। छिप कर काम करने का मज़ा ही कुछ और है।

एकाएक लगा कि पार्क में बैठे बहुत देर हो गयी है। आज पूरा समय पुरानी छुटपुट यादों में ही बीतता गया। मैंने सोचा अब की बरसात में नैनीताल जाकर उन्हीं बेंचों पर बैठूंगा जहां कभी मैं समय व्यतीत करता था। यह समय बताएगा कि कितना अपने मन की कर पाता हूं।





Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama