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Sheikh Shahzad Usmani

Fantasy

4.7  

Sheikh Shahzad Usmani

Fantasy

मोगाम्बो ख़ुश हुआ

मोगाम्बो ख़ुश हुआ

4 mins
421


"सुना है कि वो रिटायर्ड पुलिस अफ़सर ठाकुर बल्देव सिंह जय और वीरू नाम के दो चोरों को ट्रेनिंग दे रहा है मुझे नुकसान पहुँचाने के लिए!" डाकू ग़ब्बर सिंह रामनगर के जंगल में एक ऊँची चट्टान पर खड़ा होकर ग़ुर्राते हुए अपने साथियों से बोला।


"जी हुज़ूर! क्यों न हम ज़ल्द ही उन्हें अपने दल में शामिल कर लें!" सांभा अपनी आस्तीन सँभालते हुए बोला।


"हुज़ूर सुना है वे अपने उस बॉस को उल्लू बना कर लूट कर भागे हैं जो हर अच्छी ख़बर पर बोलता है - 'मोग़ाम्बो ख़ुश हुआ!' वाक़ई वे दोनों तेज़ दिमाग़ वाले लगते हैं!" कालिया अपनी ज़ुल्फ़ें झटकते हुए बोला।


"हुज़ूर अपना हीरा उस तांगे वाली बसंती को सपने में ही देखता रहा और यहाँ तो वीरू ने आते ही बसंती का दिल जीत लिया और दूसरा वो जय है न... वो ठाकुर की विधवा बहू पर लाइन मारते देखा गया है!" सांभा ने हीरा को दूर से चिढ़ाते हुए कहा।


"हा हा हा... मोग़ाम्बो ख़ुश हुआ! जय और वीरू हमारे काम के हैं और वो बसंती भी!" अपने हुज़ूर के मुख से मोगाम्बो वाला तक़िया क़लाम सुनकर सभी डाकू दंग रह गये। तभी ग़ब्बर सिंह दहाड़ कर बोला, "मोग़ाम्बो को जय, वीरू और बसंती दो दिन के अंदर चाहिए!"


"लेकिन हुज़ूर, आप वो शहरी मोग़ाम्बो नहीं.. हमारे ग़ब्बर सिंह हैं.. ग़ब्बर!" हीरा बोल पड़ा।


"चुप रह!" हवाई फ़ायर कर पिस्तौल उछाल कर कैच करते हुए ग़ब्बर बोला, "काम कर! अरे, जाओ तुम सब यहाँ से! कल मिलते हैं किसी अच्छी ख़बर के साथ!" यह कहता हुआ ग़ब्बर चला गया अपने अड्डे की तरफ़।


"ग़ब्बर को हो क्या गया है? उसे बसंती की ज़रूरत क्यों है?" हीरा ने बेचैन होकर कालिया से कहा।


"अबे, तू क्यूँ घबरा रहा है! बसंती तेरी ही होकर रहेगी! वो साली घोड़े परखना और साधना अच्छी तरह जानती है। ग़ब्बर को नये घोड़ों की ज़रूरत है, इसलिए बसंती चाहिए उसे!" कालिया ने हीरा के गले में हाथ डालकर कहा।


अगले दिन बड़े सबेरे से वे तीनों डाकू सांभा, कालिया और हीरा जय, वीरू और बसंती को पकड़ने के लिए कोशिशें करने लगे। 


तभी सांभा की नज़र दो भागते घोड़ों पर पड़ी। दोनों पर लड़कियें सवार थीं। नज़दीक़ जाने पर पता चला कि एक घोड़े पर बसंती सवार थी और दूसरे पर ठाकुर की विधवा बहू राधा। दोनों अपने-अपने सिर पर पगड़ी बाँधे और मर्दों के कपड़े पहने हुए थीं। 


सांभा अपने घोड़े से उतर कर झाड़ियों में घोड़े के साथ छिप गया। 


"अरे, लगता है अपन ग़ब्बर के इलाक़े में आ गये। लेकिन राधा भाभी मुझे ख़ुशी है कि तुमने घुड़सवारी सीख ही ली। अब तुम्हारे लिए भी एक बढ़िया घोड़े का जुगाड़ करके रहूँगी... बसंती नाम है मेरा!" बसंती राधा से बोली।


"लेकिन मुझे तो यही घोड़ा पसंद है! दोस्ती हो गई है इससे!" राधा ने अपने घोड़े का सिर सहला कर कहा।


"चुप! यह तो मेरे आशिक़ वीरू का घोड़ा है! रोज़ तुम्हारे लिये उसके घर से चुरा कर लाती हूं और उसके जागने से पहले वहीं बाँध देती हूँ!" बसंती ने राधा को समझाते हुए बताया।


तभी तेज गति से ग़ब्बर सिंह वहाँ आ धमका।


"हा हा हा... मोगाम्बो.... नहीं ... ग़ब्बर ख़ुश हुआ! मर्दों के कपड़ों में जनाना! फूलन देवी के गुट की हो क्या तुम दोनों?" 


ग़ब्बर सिंह को देखकर राधा बेहोश होकर वहीं ज़मीन पर गिर पड़ी। बसंती उसे सँभालकर पानी पिलाने लगी। 


तभी झाड़ियों में से सांभा घोड़े सहित बाहर आया और ग़ब्बर सिंह से मुख़ातिब होकर बोला, "हुज़ूर, हम आपके हुकुम मुताबिक़ इनका पीछा कर रहे थे ये ही हैं बसंती और राधा!"


"मोगाम्बो... ग़ब्बर ख़ुश हुआ! देर किस बात की? ले चलो इन दोनों को उठा कर!" ग़ब्बर दहाड़ा। राधा वाला घोड़ा बिदक कर पीछे की तरफ़ दौड़ पड़ा।


"हुज़ूर, भारी-भरकम बसंती को आप उठाओ और राधा को मैं!" सांभा बोला।


"नहीं! राधा को मैं ले जाऊंगा ताकि इसका जय मेरे पास तक ख़ुद चला आये। वो भगोड़ा घोड़ा गाँव जाकर इत्तला दे ही देगा। तुम बसंती के हाथ-पैर बांधकर लाना। लेकिन ख़बरदार नीयत ख़राब नहीं करना। मालूम है न... अपना हीरा इसका दीवाना है!" गब्बर सिंह ने राधा को घसीटते हुए अपने घोड़े पर लादते हुए कहा। 


बसंती का घोड़ा सारा माज़रा समझ चुका था। पहले उसने ग़ब्बर सिंह पर पीछे से हमला कर नीचे गिरा दिया और फ़िर तुरंत सांभा को रौंद डाला। बसंती ने फ़ुर्ती से सांभा और ग़ब्बर सिंह दोनों की पिस्तौलें अपने क़ब्ज़े में कर उन दोनों के पैरों पर गोलियां दाग़ दीं। डाकू ग़ब्बर सिंह और सांभा दोनों धूल चाटने लगे।


"हा हा हा... बसंती ख़ुश हुई! ग़ब्बर सिंह... बसंती नाम है मेरा।" यह कहते हुए बसंती ने अपनी पगड़ी से ग़ब्बर सिंह के हाथ उसकी पीठ के पीछे बाँध दिये। यह सब देख राधा में भी असीम शक्ति आ गई। उसने अपनी पगड़ी से साँभा के हाथ उसी तरह बाँध दिये। अपनी सुरक्षा के लिए बसंती ने ग़ब्बर और साँभा दोनों के हाथ-पैरों में ढेर सारी गोलियां दाग दीं।

 

कुछ ही देर में जय और वीरू कुछ ताक़तवर गाँववालों के साथ वहाँ पहुंच गये। ग़ब्बर सिंह और सांभा को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया गया। 


वीरू को बसंती की बहादुरी पर नाज़ था। लेकिन जय समझ नहीं पा रहा था कि यह वही सफ़ेद साड़ी पहनने वाली ठाकुर साहब की विधवा बहू राधा ही है या कोई और...।


"क्या देख रहे हो जय बाबू! बसंती नाम है मेरा। गाँव की सभी नारियों को ताक़तवर बहादुर बना सकती हूँ मैं! बसंती ने राधा की पीठ थपथपाते हुए कहा, "गाँव की औरतों को कमतर मत आंँकना बाबू!"



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