और बहार लुट गयी
और बहार लुट गयी
''सुखिया लागत है अबकी बार तो धन की पोटली हमारी झुपड़िया में भी आबेगी !'' चोखे ने अपनी पत्नि सुखिया जो कि सिर पर फटी साड़ी पहने चोखे के पास ही खड़ी तालाब में फल -फूल रही सिंघाड़े की बेल को निहार रही थी, मुस्करा दी और शरमा कर बोली
''जी हमको अबके पाँव की रुनझुन पाजेब जरूर दिलैयो !''
''हाँ - हाँ दिलबा देंगे -- दिलबा देंगे !''
''मेहनत भी तो जी तुमने बहुत की है !''
''हाँ हम दोनों ने !'' कहकर दोनो हँस दिये।
''चोखे !''
''हाँ ।''
''तुमको तेजपाल बुलात है मिल लेयो बासे। किसी व्यक्ति ने चोखे के पास आकर कहा सुनकर सुखिया और चोखे दोनों के ही चेहरे पर उदासी छा गयी।
''कहाँ है ?''
''वहाँ।''
''ठीक है भैया।''
''सुखिया हमको माफ़ कर दे इस बार भी तेरे पाँव बिना पाजेब के ही रहेंगे !'' चोखे ने नज़र चुराते हुए अपनी उदास खड़ी पत्नि से कहा।
''कोई नहीं जी ,जा बहार को तो लुटनो हो, साहूकार तेजपाल को इतनो ब्याज जो बढ़ गयो है !'' परेशान सुखिया ने तालाब के पानी में हिलती -डुलती --कपकपाती अपनी और अपने पति के लाचार प्रतिबिम्ब को देखते हुए कहा और दोनो हाथो में हाथ लिये वहीं बैठ गये ।
''आज से बहार बिकने तक यह तालाब तेजपाल को भयो।''