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नालायक बेटा

नालायक बेटा

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अरे ओ नालायक –"पिताजी ने जोर से चिल्ला कर विशाल को आवाज़ लगाई जो कॉलोनी में आये टेंकर से पानी भरने में व्यस्त था।" गर्मी के दिनों में पानी की किल्लत के कारण 3 दिनों में ही टेंकर से पानी की आपूर्ति होती थी। आवाज़ सुनकर विशाल बोला -आया पिताजी। विशाल को पानी भरने के बाद के कामों की फेहरिस्त संभाल दी गयी थी, मंडी से सब्जी लाना, गेहूं पिसवाना और ऊपर छत की झाड़ू लगानी है।

छोटा भाई विवेक इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा की तैयारी में व्यस्त था। पिताजी उसके कमरे में जाकर पढ़ाई का जायजा रोजाना लिया करते थे और उसकी हर समस्या का तत्काल समाधान हो जाता था। वैसे भी विवेक पढ़ाई में कुशाग्र था। विशाल भी पढ़ाई में औसत दर्जे का छात्र रहा और उसने BA कर नौकरी की तलाश जारी कर दि थी।

कुछ दिनों बाद विवेक का परिणाम आ चुका था और वह अव्वल रेंक के साथ इंजीनियरिंग कॉलेज में चयनित हो चुका था। घर पर छोटे बेटे की सफलता पर उत्सव का माहौल था। पिताजी ने पूरे मोहल्ले भर में मिठाई बटवाई थी। पैसों की व्यवस्था कर छोटे बेटे का दाखिला इंजीनियरिंग कॉलेज में करवा दिया गया।

अगले ही महीने बड़े बेटे विशाल का भी बैंक में क्लर्क की पोस्ट पर चयन हो गया, पर आज घर में माँ के सिवा किसी को भी इस सफलता पर बधाई देते हुए नहीं सुना गया। चूंकि पिताजी स्वयं प्रशासनिक अधिकारी पद से रिटायर्ड हुए हैं तो उनके लिए ऐसी सफलताएं मायने नहीं रखती थी या यों कहें कि इस पर खुशी जाहिर करना भी उनकी शान में कमी करने जैसा था। माँ ने विशाल को गले से लगाया और आशीर्वाद भी दिया था। उसका मनपसन्द गाजर का हलवा भी खाने में बनाया था। छोटी बहन अन्नु भी अपना रोल मॉडल विवेक भैया को ही मानती थी और अपनी पढ़ाई की सारी चर्चायें भी उन्हीं से फोन पर करती थी। विशाल ने कई बार छोटी बहन से पूछा था कि पढ़ाई में कभी दिक्कत हो तो पूछ लिया कर पर उसने हँस कर बोल दिया कि भैया आपसे क्या पूछुं ?

विवेक की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी और उसे अमेरिकन कम्पनी ने अच्छे पैकेज पर न्यूयॉर्क ऑफिस दे दिया था। कुछ सालों में उसने वहीं शादी कर वहीं की नागरिकता के लिए अर्जी लगा दी। अब तो उसका घर आना भी वर्ष में एक ही बार होता था। विवेक ने फोन पर ही शादी की खबर भी 1 वर्ष बाद ही बच्चे होने की खबर के साथ ही घर पर दी थी। पिताजी अपमान के भाव को मन के अंदर ही दफन कर खुशी से आशीर्वाद देने का अभिनय कर रहे थे। बाद में फोन के रिसीवर को माँ को थमा सीधे अपने कमरे में चले गये।

विशाल ने मां की पसन्द से ही शादी की और उसकी पत्नी घर की सारी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रही थी। पर कुछ दिनों से माँ बीमार हो गयी थी। डॉक्टर ने जांच कर बताया तो पता चला कि उनकी दोनों ही किडनी कमजोर हैं और कम से कम एक किडनी का ट्रांसप्लांट आवश्यक हो गया है। विशाल ने अपनी किडनी खुशी खुशी माँ को दे दी थी। जब खबर विवेक तक पहुंची तो छुट्टी नहीं मिलने की मजबूरी बता कर आने में असमर्थता जता दिया।

आज पहली बार पिताजी, नालायक बेटे के गले लगकर फफक फफक कर रो रहे थे।


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