DivyaRavindra Gupta

Comedy Drama Inspirational

1.0  

DivyaRavindra Gupta

Comedy Drama Inspirational

गृहिणी

गृहिणी

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मेरी आज सुबह कुछ जल्दी 5 बजे ही नींद उड़ गई थी , परन्तु अलसाया हुआ बिस्तर में दोनों बच्चों के पास लेटा हुआ था । रसोई से बर्तनों के खड़ खड़ की मंद आवाज़ आ रही थी ।

वैसे तो अक्सर मैं 6 बजे ही उठता हूँ , तब तक पत्नीजी रसोई का झाड़ू निकाल कर चाय बना चुकी होती है ।

आज कुछ जल्दी नींद उड़ने पर भी उन्हें उठा हुआ पाया तो समझ आया कि उनका दिन सुबह साढ़े चार से ही शुरू हो जाता है । जिसके बाद वो सुबह 8 बजे तक झाड़ू पोछा ,चाय , बिस्तर समेटना, बच्चों को तैयार करना , हमारा टिफिन और नाश्ता, स्कूल बैग, टेस्ट या एग्जाम हो तो बच्चो को एक बार पुनः तैयारी करवाना आदि आदि , सारे काम जो हमें प्रतिदिन सही समय पर पूर्ण हुए मिलते हैं परन्तु जिनके लिए हम कभी धन्यवाद देना तो दूर , महसूस करना भी जरूरी नहीं समझते ।

आज बिस्तर पर लैटे हुए पता नहीं क्यों पत्नीजी के प्रति प्यार और सम्मान का भाव उमड़ रहा था ।

कल ही तो मैंने उसे बिना किसी कारण के सुबह सुबह झिड़क दिया था । जिसमें उनकी कोई गलती भी नहीं थी ।

फिर भी वो बिना किसी प्रतिकार के अपने कामों में व्यस्त थी ।

बच्चों की चिल्लाहट और मेरी झुंझलाहट के मध्य उसकी भीनी भीनी मुस्कराहट हर समस्या का समाधान होती है । सुबह उनकी उपस्थिति हर जगह पर महसूस की जा सकती है । रसोई में नाश्ते की तैयारी से बाथरूम में बच्चों को नहलाने से मेरे कपड़ों की इस्त्री तक ...पता नहीं कैसे वो इतने अल्पसमय में हर काम निपटा कर हमें खुशी-खुशी स्कूल और ऑफिस के लिए रवाना कर देती है ।

अक्सर जब मैं ऑफिस से घर आता हूँ तो उन्हें ताने मारकर कहता हूँ कि तुम तो यहाँ घर पर आराम करती हो , टीवी देखती हो और हम वहां ऑफिस में कितना काम करते हैं । इसके जवाब में वो मुस्कराभर देती है और कहती है - किस्मत अपनी अपनी ...

और हम स्वयं को बेचारा महसूस कर बिस्तर पर टीवी चलाकर एक के बाद एक फरमान सुनाते रहते हैं - पानी पिला दो , चाय बना दो वगेरह वगेरह ।

जैसे सीमा पर गोली खाकर घायल अवस्था में गहन चिकित्सा कक्ष में निढाल बेसुध अवस्था में हो और वो हमारी नर्स , जिसका कर्तव्य अविलम्ब , सहर्ष हमारी आज्ञा पालन और एकमात्र धर्म हमारी सेवा हो ।

रात्रि 10 बजे तक भी उनके काम खत्म नहीं होते और फिर हम अक्सर झुंझलाकर बोल ही देते हैं - क्या यार, तुम भी इन छोटे छोटे कामो में पूरा दिन निकाल देती हो , समझ नहीं आता , कितना बेकार मैनेजमेंट है तुम्हारा ।

आज जब पूरे दिन की उनकी दिनचर्या को बिस्तर पर लेटे लेटे महसूस किया तो समझ आया कि अगर वो 2 दिन मायके चली जायें तो घर पर आने का मन नहीं होता , खाना भी कभी खाया तो ठीक वरना ऐसे ही काम चला लेते हैं और फिर फोंन पर उन्हें गरियाते हैं कि मायके जाकर बैठ गयी हो और घर की कोई चिंता नहीं है ।

आज जब उनकी महत्वता को महसूस करने का मन हुआ तो सोचा कि उन्हें उनका सम्मान और अधिकार मिलने चाहिए ।

तभी महिला सशक्तिकरण ,स्वयं सेवी संगठनों , आधुनिक विचारकों की बात मन में ख्याल आयी कि क्यों नहीं उन्हें उनके मेहनताना की मासिक आय दी जाये और मन ही मन प्रसन्न होकर हमने उन्हें 10,000 रुपये हाथ मे थमा दिए ।

वो बोली किसलिए ?

दूध , अखबार का हिसाब तो परसों ही किया है , फिर यह क्या ?

हमने कहा - यह तुम्हारा मेहनताना .....तुम इतना काम करती हो उसका...

उनकी आँखों में आँसू देख हम हैरान परेशान थे , कारण पूछा तो बोली मैं स्वयं को घर की मालकिन समझती थी , आपने काम वाली बाई बना दिया ।

हम हमारा सिर पकड़कर बैठ गए और इन आधुनिक विचारकों को मन ही मन कोसने लगे ।

आज समझ आया कि पत्नी जी की सोच इन विचारकों और हमसे कहीं बहुत उच्चस्तर की है ।

हमने उन्हें आलिंगनबद्ध कर लिया । उन्होंने ताना मारते हुए बोला कि काम वाली बाई से दूर ही रहो और हम खिलखिला कर हँस पड़े ।


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