प्यार का पहला एहसास
प्यार का पहला एहसास
नवोदय स्कूल में जब हम कक्षा 11 में आये तो क्लास का माहौल बदल सा गया था । अब हम पढ़ाई से ज्यादा नॉवेल , गेम्स , और लड़कियों की बातें करने लगे थे । माहौल का बदला हुआ कहना यहां इसलिए जरूरी है कि हमारे समय मे कक्षा 6 से 10 तक आवासीय विद्यालय में पढ़ने के बावजूद क्लास की कई लड़कियों से तो कभी बात तक नहीं की । पर अब माहौल बदलने लगा था । अब क्लास की लगभग सभी लड़कियों (अत्याधिक सरल को छोड़कर) को कोई ना कोई ट्राई करने लग गया था । कुछ सफल हो चुके थे कुछ अभी कोशिशरत थे तो कुछ को लाल सिग्नल मिल चुका था और वो अब कहीं और प्रयासरत होने लगे थे । मैं हमारे बेच का सबसे कम उम्र का लड़का था और दुर्भाग्यवश सभी लड़कियां भी उम्र में बड़ी थी । जो उस समय मित्रता करने के लिए महत्वपूर्ण कारक रहता था । वैसे भी शालीन एवं पढ़ाकू किस्म का लड़का होने के कारण लड़कियाँ मुझमे भैया तत्व ज्यादा देखा करती थी जो कि निःसन्देह गर्व की अनुभूति तो नहीं ही थी , सच कहुँ तो यह दोस्तो के मध्य शर्मसार करने वाला चरित्र था । मैं भी अब इस प्रकार के व्यक्तित्व की परछाई से बाहर निकलने को व्याकुल था ।
इसी कशमकश भरे अंतर्द्वंद के बीच कुछ दिनों से हमारी नज़र हमसे एक क्लास जूनियर लड़की से मिलने लगी थी । लड़की सुंदर सुशील और मेधावी और मुख्य रूप से उम्र में हमसे छोटी थी । प्यार करने की कुछ प्रारम्भिक शर्तें पूरी हो चुकी थी । चूंकि मैं प्यार के इस क्षेत्र में नया खिलाड़ी था परन्तु हौसले बुलन्द थे कि बस अब तो कोई मित्र होनी ही चाहिए ताकि सबके मध्य गर्व से सीना तान कर चल सकें । खैर देखने का दौर चलने लगा , निगाहें मिलने लगीं । लड़कियां मनोवैज्ञानिक तौर पर लड़कों से अधिक तेजस्वी और समझदार होती हैं । वो मनोभावों को जल्द पढ़ना भी जानती हैं और जानते हुए अनजान बनने का उनका हुनर तो काबिले तारीफ होता ही है । खैर बिना पलक झपकाए एकटक देखने का यह हमारे दुस्साहस को उसकी मुस्कराहट ने और बढ़ा दिया । लगा जैसे हरित सिग्नल मिल गया परन्तु लड़कियाँ मनोभावों का ऐसा मिश्रण करना जानती है कि पासा कभी भी पलट जाता है । धीरे धीरे हम छोटे छोटे इशारे जिन्हें आप आपत्तिजनक श्रेणी में नही रख सकते , करने लगे । यह सब करने के लिए एकमात्र जगह हुआ करती थी हमारी भोजनशाला , हमारी मैस । वहाँ लड़कियों और लड़कों की बेंच सदन अनुसार अलग अलग तो लगती थी परन्तु हम इस प्रकार बैठा करते थे कि उसे हम और वो हमें आसानी से देख सके । निगाहों ही निगाहों में प्यार परवान चढ़ने लगा । मेस में खाना खाने के पश्चात थाली स्वयं ही बाहर मेस के बाहर बायीं तरफ लगी टँकी से नल चलाकर धोना होता था । खुशनसीबी यह थी कि यह जगह लड़के लड़की के लिए कॉमन थी । हम अल्पाहारी होने के कारण जल्द दो चपाती खाने के बाद सबसे पहले उठने वाले हुआ करते थे , जब तक अन्य बच्चे खाना शुरू ही कर रहे होते । किस्मत कि बात यह थी कि वो लड़की भी जल्द खाना खाकर बाहर निकल जाती । कुछ एक फ़ीट तक कि नजदीकतम मुलाकात थाली धोते समय होने लगी पर मजाल हम वहाँ मुख से "हेलो" भी बोल पायें । जितने नजदीक होते , अनजान बनने का अभिनय करते । एक दिन इस समस्या का अपने घनिष्ठतम मित्र से सलाह मशविरा कर निवारण किया गया कि एक प्रेम पत्र लिख कर उसे दे दिया जाए और सामने से प्रत्युत्तर का इंतज़ार करें । तब अग्रिम कार्यवाही का निर्णय लिया जाए । चूंकि हमारे आवासीय स्कूल में कुछ ऐसे केस घटित हो चुके थे जहां यह चिट्ठियों का आदान प्रदान पी.टी.आई.सर द्वारा पकड़ लिया गया और उसके बाद उन आशिक मिज़ाज छात्रों की जो दयनीय स्थिति की गई ... डंडों से धुनाई , एक एक घण्टे भरी धूप में मुर्गा बनाकर चलाना ...इस प्रकार की सजा जहाँ शारीरिक प्रताड़ना होती थी तो साथ ही अच्छे अच्छे छात्रों की इमेज को धूमिल भी कर रही थी । इन तमाम चुनौतियों व जोखिमों के बावजूद प्रेम पत्र लिखने का निर्णय किया गया क्योंकि और कोई उपाय दृष्टिगत नहीं था । जोखिम भरा परन्तु प्रणय भावों को उत्कृष्ट हिन्दावली में उकेर कर एक प्रेम निवेदन पत्रावली लिखी गयी और एक बहुत ही विश्वसनीय जूनियर छात्र के माध्यम से पहुंचाने की योजना बनी । सन्देशवाहक को क्रियान्वयन के दौरान बरतने वाली सावधानियों की एक लंबी फेहरिस्त समझायी गयी , साथ ही कइयों बार अभिनय करवा कर अंतिम रूप दिया गया । मन अभी भी आतंकित था कि यदि लड़की के मन में प्रेम भावों का प्रस्फुटन नहीं हुआ हो और यह सब यदि एकतरफा ही हो तो क्या होगा । यहां तक तो फिर भी हम हमारे दिल-ए-हाल को सांत्वना दे देंगे पर क्या हो यदि लड़की इस चिट्ठी को PTI सर को दे दे या गलती से उनके हाथ लग जाये । तो वो तो हमारा मुरब्बा -अचार सब एक ही साथ बना देंगे क्योंकि उस समय PTI सर की काबिलियत इसी बात से आंकी जाती थी कि उन्होंने कितने प्रेम प्रसंगों को पुष्पित होने से पहले डाली से तोड़कर पैरों से कुचला और वो भी इसी फिराक में रहा करते थे । सो इन सब से बचने का उपाय यह निकाला गया कि चिट्टी के अंत मे एक मार्मिक अपील की जाए कि यदि प्रणय निवेदन अस्वीकार हो तो कृपया इसे हमारी भूल समझकर फाड़ दें और हम आपको भविष्य में कभी नज़र उठा कर भी नहीं देखेंगे ।चूंकि हम क्लास के टॉपर्स में एक हुआ करते थे तो सभी अध्यापकगण के मध्य बहुत ही सुशील इमेज बनी हुई थी जो पिछले 5 सालों की कड़ी मेहनत की कमाई थी जिसे हम इस तरह से गंवाना नहीं चाहते थे । इसके साथ ही एक बड़ा खौफ, ऐसी घटनाएं हाउस वार्डेन त्वरित रूप से पेरेंट्स तक पहुंचाते थे , शायद वो इसे अपना सर्वाधिक महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों में से एक माना करते थे।
खेर इन तमाम मुश्किलों को पार कर हमारा सन्देश गन्तव्य को पहुंच दिया गया । अब इंतज़ार था उनके जवाब का , आज शाम को हम घबराहट में मेस में भोजन के लिए भी नहीं गए । अगले दिन मध्यस्थ के साथ मौखिक चेतावनी सन्देश मिला कि भविष्य में ऐसी पत्रावली दुबारा से नहीं लिखी जाए । हमारे सारे अरमान धराशायी हो चुके थे । हम देवदास के अतिरेक पर पहुंच चुके थे । दो दिन तक बीमारी का बहाना कर स्कूल व मेस से छुट्टी लेकर बेड पर ही भावनाओं की मरणासन्न अवस्था में लेटे रहे ...
जैसे मैने पहले भी कहा लड़कियों के मनोभाव पढ़ना कहीं नहीं सिखाया जा सकता । हम पुनः देवदास की दुखद स्थिति से उबरने लगे । तीसरे दिन स्कूल भी गए और उसी मेस में भोजन भी किया पर नज़र झुकाए.... पर आज हमें कोई और देखे जा रहा था (ऐसा हमारे मित्र ने बताया) । आज हमने सिर्फ न्यूनतम भोजन लिया और बाहर उसी टँकी पर थाली धोने पहुंच गए । अभी थाली धोने के लिए झुके ही थे कि किसी ने पीछे से हाथ पकड़ लिया , मुड़कर देखा तब तक हाथ मे एक चिट्ठी थमाई जा चुकी थी , हमने नज़र उठाकर देखा तो वो लड़की मुस्करा रही थी और मैं कांप रहा था । पता नहीं लड़कियों में घबराहट लड़कों से कम क्यों होती है , शायद वो पहले सब सुनिश्चित कर ही अपना जवाब रखती हैं ।
हमें हमारा जवाब मिल चुका था...।