शायद पहले का था नाता
शायद पहले का था नाता
कुछ रिश्ते दुनिया मे जन्म के बाद से सगे संबंधियों से बन जाते हैं कुछ अलग अलग यात्राओं से होकर गुजरते .....तो कुछ रिश्ते ऑनलाइन बन जाते हैं, अब यहाँ ऑनलाइन रिश्ता कोई बहुत बड़ी बात नही थी ,पर जो मिले वो क़ाबिल ए तारीफ़ है (समझने के लिए थोड़ा वक्त लगेगा पर यकीनन आप भी ऐसे घनिष्ट संबंध को जानोगे तो हैरत होगी ही ..।...सिलसिला मिराकी एप्प से शुरू हुआ, वही एप्प जिस पर मैं अपनी भड़ास लिख कर उतार दिया करती थी ..घर परिवार राजनीति बाजार और भी कई अजीज गुफ्तगू मैं सिर्फ मिराकी पर लिख देती...कई लोग मिले एक दूसरे को सुझाव की मात्रात्मक कलात्मक गतिविधियों से रूबरू करवाने के लिए, शाम का समय था ...पर धूप के भी तेवर जैसे अपने सातवे आसमान पर थे ।मैने कुछ लिखा यकायक मेरी नज़र एक पोस्ट पर गई तब सिर्फ मैंने सरसरी निगाहों से उसे पढ़ा था ,अब मेरे उत्साह की ललक भी बढ़ने लगी (पर क्यो.... क्योंकि जिस पोस्ट को मैंने पढ़ा वो बहुत प्रेरणादायी थी उन शब्दों में चमत्कार से अविष्कार तक का पूर्ण विश्वास था )जो मैंने महसूस किया तब एक एक करके वो सभी पोस्ट मैंने पढ़ी जो उस लेखक की आंतरिक आवाज उसे लिखने पर विवश कर रही थी वाकई मैं हतप्रभ रह गयी
कौन है ये लेखक, क्या शब्दों की कलाकारी की है चलो नोटिफिकेशन ऑन कर लेती हूं। फिर हर आर्टिकल कविता जब वो राइटर लिखते तो उसे मैं अपने शब्दों में उतार चढ़ाव भरकर जैसे उस कविता को जीवंत बनाने में लग जाती।
मस्तीखोर तो मैं थी ही। खुरापाती हर समय दिमाग मे सूझती भी रहती थी, सोचा बेटा निक्कू सीखो ये कविता से, ये तुम जैसे लापरवाहों के लिए ही लिखी है। तब सोचना होगा, मैंने सुनील माहेश्वरी जी जैसे लाइफ कोच की कल्पना भी नहीं की होगी। मेरी हर आदतों को एक नए दृष्टिकोण के साथ बताना और ये लिखने का जज़्बा भी storymirror पर उन्हीं की देन कह सकते हैं।
उनके पारिवारिक स्नेह की मैं भूरी भूरी प्रसंशा करती हूं। उनका बेटा दिव्यम (यथा नाम तथा गुण वाली बात),बेटी नव्या (एक निश्छल मुस्कुराहट की साम्राज्ञी) और उनकी वाइफ (मेम) जो अपनी सादगी और पाक कला में निपुणता के लिए जानी जाती है और दिव्यम तो बहुत ही प्यारा नटखट शहजादा है सबके दिल मे खुद को मैंने कही न कही पाया है शायद ये अनकहा सा रिश्ता कोई जन्मों का नाता था जो एक परिवार में मुझे मिला।