ए लव स्टोरी वाया फेसबुक
ए लव स्टोरी वाया फेसबुक
रामशरण साठवें साल में चहलकदमी कर रहे थे। सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त होने वाले थे। लेकिन सेवानिवृत्ति के छह माह पहले ही उन्हें एक ऐसा झटका मिला, जिससे उनका उबारना कठिन हो गया। उनकी पत्नी शकुंतला अचानक चल बसी। पति-पत्नी के जवानी के दिन तो मौज-मस्ती में निकल जाते हैं, मगर बुढ़ापे में एक-दूसरे का सहारा बनकर जीवन की नैया पार लगती है। रिटायर होने के ठीक पहले रामशरण ने यही बात कही थी पत्नी से। लेकिन तकदीर को कुछ और ही मंज़ूर था। बुढ़ापे की दहलीज पर जोड़ा बिछुड़ गया।
रामशरण के दोनों बेटे शहर से बहुत दूर नौकरी कर रहे थे। राहुल बैंगलोर में और रितिक सात समंदर पार अमरीका में।
माँ के निधन के कारण राहुल और रितिक घर आए और दस दिन तक पिता के साथ रहे। बच्चों को भी इस बात का दु:ख था कि पिता अकेले हो जाएँगे। माँ साथ रहती तो पिता की देखभाल भी अच्छे से हो जाती। बच्चों की घर वापसी के कोई आसार नहीं थे। शानदार पैकेज वाली नौकरी छोड़ कर रौशनपुर वापस आना और किसी छोटी-मोटी कंपनी में काम करना बुद्धिमानी नहीं कहलाएगी। रामशरण बच्चों के साथ जाने को राजी नहीं थे। शहर में उनका सबसे पुराना परिचय था। यार-दोस्तों के बीच समय भी अच्छा कट जाएगा। परदेस में कोई बात करने वाला भी नहीं मिलेगा।
एक दिन पिता पुत्र आपसे में चर्चा करने लगे।
राहुल बोला- ''पिताजी, अब तो हम लोग 'साइबर एज़' में हैं। आप भी इंटरनेट-फेंडली हो जाएँ, तो हम लोग रोज ऑनलाइन एक-दूसरे को देखेंगे और बातचीत भी कर सकेंगे। घर पर कम्प्यूटर है। नेट कनेक्शन भर लेना है। जब आप बोर होने लगें तो नेट पर बैठा करें। फेसबुक है, ट्विटर है, ब्लॉग है। और भी अनेक सोशल साइटें हैं। इनके माध्यम से आप अपने विचार देते रहें, लोगों के विचारों को भी देखते रहें। टिप्पणी करते रहे। इसी में आप के घंटों निकल जाएँगे। समय कम पड़ जाएगा।''
''ये तुमने ठीक आइडिया दिया, राहुल।'' रितिक ने भी भाई का समर्थन किया, ''पिताजी के एज ग्रुप के अनके लोग भी अब फेसबुक, ब्लॉग, ट्विटर, व्हाट्सऐप वगैरह में नज़र आते हैं। पिताजी, यही ठीक रहेगा। यू विल एंज्वाय इट। देखिएगा, अच्छा लगेगा। कम्प्यूटर के सामने वीडियोकेम लगा देंगे, तो हम आपका चेहरा भी देख सकेंगे। आप भी हमें देख सकेंगे।''
''वाह, यह तो अच्छा आइडिया है।'' रामशरण चहके, ''तो, मतलब यह हुआ कि इंटरनेट लगवा लिया जाए? लेकिन मुझे तो चलाना भी नहीं आता। बहुत पहले टाइपराइटर पर भी काम करता था, मगर अब अभ्यास छूट गया है। दिक्कत हो जाएगी।''
''अरे, कोई कठिन काम नहीं है पिताजी। नेट चलाना हम सिखा देंगे। बिल्कुल ही आसान है। और आप ने अपने दफ्तर में भी नेट चलाया ही है, फिर क्या प्रॉब्लम।'' राहुल भी बोल पड़ा।
''हाँ, वो तो है, लेकिन तब ऑफिस में ऑपरेटर साथ रहता था न।''
''हाँ, यहाँ आपको अपना काम खुद करना है। आपका ई-मेल एड्रेस बना देते हैं और फेसबुक में एकाउंट खोले देते हैं। यह सब अभी तक तो फ्री है। आप फेसबुक में बैठिए और दुनिया से जुड़ जाइए।''
''फेसबुक के बारे में खूब सुनता रहता हूँ। सोशल नेटवर्किंग का एक अच्छा फोरम बन गया है।'' रितिक की बात से अपनी सहमति जताते हुए रामशरण बोले, ''यह ठीक रहेगा। सचमुच, घर पर खाली बैठे-बैठे करूँगा क्या? नेट लग जाएगा, तो अपना एक ब्लॉग भी बना लूँगा। अरे, तुम लोग मेरा ब्लॉग भी बना दो। इसमें अपने कुछ विचार दे दिया करूँगा। पुरानी मशहूर शेरो-शायरी और कविताएँ भी उसमें डाल दिया करूँगा। मेरा कवि मित्र सुमनकुमार भी नामी ब्लॉगर है। उसे भी अच्छा लगेगा कि मैं ब्लॉगर हो गया हूँ।''
राहुल और रितिक बड़े खुश हुए कि उन्होंने पिताजी की बोरियत दूर करने का बंदोबस्त कर दिया। दूसरे दिन ही घर पर नेट लग गया। पिता के मनोरंजन की माकूल व्यवस्था करके बच्चे लौट गए।
कुछ दिन तक रामशरण कम्प्यूटर पर हाथ साफ करते रहे। एक-दो बार खराब भी हुआ, लेकिन ठीक भी करवा लिया। धीरे-धीरे वे की-बोर्ड के खटरागी हो गए। जब देखो, 'नेट' पर बैठे हैं और अपने ब्लॉग 'रामशरण उवाच' में कुछ न कुछ लिख रहे हैं। मित्रों से मिलना-जुलना बंद हो गया। लेकिन बाद में फेसबुक से जुड़े, तो ब्लॉग-लेखन पीछे छूट गया। फेसबुक में मज़ा आने लगा। दो लाइन के उनके विचारों पर दो-चार लोगों की तत्काल टिप्पणियाँ आने लगीं। कुछ लोग उनके विचारों को 'लाइक' भी करने लगे। लेकिन उन्होंने यह महसूस किया कि फेसबुक पर उनके दोस्तों की संख्या बिल्कुल ही नहीं बढ़ रही।
एक दिन उनके साथी सूरजभान घर आए तो उन्होंने रोचक आइडिया दिया। वे कहने लगे- ''यार रामशरण, तुमने फेसबुक में अपनी सफेद बाल बालों वाली तस्वीर लगा रखी है। देखो तो जरा, कितने बूढ़े नजर आ रहे हो। यह यंग लोगों की दुनिया है। बूढ़े लोगों का फेसबुक में क्या काम? मेरी मानों तो अपनी पच्चीस साल पुरानी कोई सुंदर-सी फोटो लगा लो। अपनी जन्मतिथि भी मत दो। तब देखना, लोग फटाफट फ़्रेंड बनेंगे। लड़के भी और लड़कियाँ भी।
सूरजभान की बात सुन कर रामशरण हँस पड़े- ''मतलब यह कि मैं अपनी झूठी प्रोफाइल बनाऊँ? यह तो गलत बात है यार। मैं जो हूँ, वही क्यों न रहूँ?''
''अरे, इसमें झूठ क्या है? तुम अपनी ही फोटो तो लगा रहे हो न, किसी फिल्मी हीरोइन की तो नही? भाई मेरे, यह ज़माना मार्केटिंग का है। अगर तुम्हें अपनी मार्केटिंग करनी है, तो कुछ खेल करने ही पड़ेंगे। मैं कुछ लोगों को जानता हूँ, जो ऐसा कर रहे हैं। अनेक प्रौढ़ औरतें अपनी जवानी की तस्वीरें लगाए हुए हैं। बहुत-से प्रौढ़ भी जवानी वाली तस्वीरें चिपकाए हुए चैटिंग कर रहे हैं। तुम ऐसा कर के तो देखो। मज़ा आएगा। तुम्हारे फ्रेंड भी बढ़ेंगे।''
रामशरण मुसकराए और बोले, ''ठीक है यार, यह भी करके देख लेते हैं ।''
रामशरण ने फेसबुक के अपने पुराने एकाउंट को बंद करके नया एकाउंट शुरू कर दिया। पच्चीस साल पुरानी अपनी एक तस्वीर स्केन करके अपने परिचय के साथ डाल दी। उम्र भी हटा दी। नाम-रामशरण, जन्म -पाँच नवंबर, रौशनपुर, लिंग -पुरुष, स्टेटस- अकेला। रुचि- स्त्री-पुरुष दोनों से दोस्ती करना। 'प्रोफाइल' में और भी अनेक सूचनाएँ भर दीं। जैसे पुराने गानों एवं फिल्मों के प्रेमी। पिज़्ज़ा -बर्गर खाने के शौकीन। गाना गाने में खास दिलचस्पी। अँग्रेज़ी की कुछ मशहूर पुस्तकों के नाम भी डाल दिए।
दो-चार दिन बाद से ही अप्रत्याशित नतीजे शुरू हो गए। धड़़ाधड़ फ्रेंड रिक्वेस्ट आने लगी। इनमें अधिकतर युवक-युवतियाँ ही थे।
रामशरण देश-विदेश में होने वाली घटनाओं पर दो-चार लाइन के विचार देते, तो उस पर आठ-दस टिप्पणियाँ आ जातीं। पच्चीस-तीस लोग उसे लाइक कर लेते। मित्रों की तादाद भी बढऩे लगी। अक्सर कुछ इसी तरह की प्रतिक्रियाएँ मिलती कि 'आप इतनी कम उम्र में इतने परिपक्व सोच रखते हैं। बधाई'।
रामशरण मन ही मन हँसते और मज़ा लेते। सूरजभान को भी मन की बात बताते और बच्चों से भी शेयर कर लेते। राहुल और रितिक ने पिता के इस आइडिया को पसंद किया। उनको इस बात का भी पता था कि फेसबुक में अनके लोग ऐसा ही कर रहे हैं। कोई अपनी फोटो की जगह हीरो या हीरोइन की फोटो लगा लेगा, तो कोई अधिकांश सूचनाएँ लगत-सलत देगा। सब अपने-अपने तरीके से जी रहे हैं।
एक दिन जब रामशरण फेसबुक पर बैठे थे, तो उनके संदेश बाक्स में किसी उनकी फेसबुक- 'फ्रेंड' अर्पिता का एक संदेश आया-''आपके विचार अच्छे हैं। लेकिन आप उससे भी ज्यादा अच्छे हैं। मैं आपसे प्यार करने लगी हूँ।''
रामशरण चकराए, ये क्या हो गया भाई। कौन है ये अर्पिता जो सीधे लव अफेयर शुरू करने के मूड में है? रामशरण ने फौरन उसका प्रोफाइल देखा। रामपुर की रहने वाली है। फैशन डिज़ाइनरहैं। अकेली रहती है। उसने अपनी प्रोफाइल में साफ तौर पर लिख रखा है कि केवल पुरुषों से ही दोस्ती में रुचि है। अपने बारे में उसने लिख रखा था-'मैं बिंदास किस्म की लड़की हूँ। जीवन को जीना चाहती हूँ। बस, धोखेबाजों से डर लगता है।
रामशरण अर्पिता का संदेश पढ़ कर घबरा गए। साठ साल के आदमी को तीस साल की एक युवती प्रपोज कर रही है। शायद इसलिए कि उन्होंने अपनी उम्र छिपा कर रखी है। अपनी पुरानी तस्वीर में वे तीस के आसपास के ही लगते हैं। उन्होंने अर्पिता का चेहरा देखा। वह तो पच्चीस-तीस साल की युवती लग रही थी। पच्चीस साल की युवती से साठ साल का आदमी प्यार कैसे कर सकता है?
रामशरण ने सोचा कि लड़की को अपने बारे में साफ-साफ बता देना चाहिए। किसी को धोखे में रखना ठीक नहीं। कल को जब युवती को पता चलेगा कि दोनों की उम्र में तीस साल का अंतर है, तो उसे कितना दु:ख होगा। लेकिन सहसा वे हिम्मत नहीं कर पाए। उन्होंने भी अर्पिता का ज़वाब दिया- ''तुम्हारे विचारों से मैं भी प्रभावित हूँ। सच कहूँ तो मेरे मन में भी तुम्हारे प्रति प्यार उमड़ रहा है।''
रामशरण ने जैसे ही यह संदेश भेजा, तो अर्पिता का ज़वाब हाजिर था, ''अगर ऐेसी बात है तो प्लीज़ 'किस' मी।''
बड़ी मुसीबत है। इस का क्या ज़वाब दें। उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया, लेकिन अर्पिता का संदेश पे संदेश आता रहा, 'आइ लव यू। प्लीज किस मी'।
आखिर हिम्मत करके रामशरण ने किस भेज दिया। अर्पिता का संदेश आया- ''आप बड़े अच्छे हैं। आइ लव यू टू मच। कभी हम मिलेंगे। क्या आप मेरे शहर आ सकते हैं। मैं इंतज़ार करूँगी आप का।''
''लेकिन तुम बहुत दूर रहती हो। रामपुर पहुँचने में चौबीस घंटे लग जाएँगे।''
''तो मैं आ जाऊँ आपके शहर? आप तो अकेले रहते हैं।''
''तुम भी तो अकेली रहती हो।''
''हाँ, इसीलिए तो आपका साथ चाहती हूँ। आइए न। कब आएँगे?''
''देखता हूँ। बाद में बताऊँगा।''
इतना संदेश देने के बाद रामशरण ने कम्प्यूटर ही बंद कर दिया और सोचने लगे कि बुरे फँसे। कभी ये अर्पिता घर पर ही आ टपकी तो अनर्थ हो जाएगा। मुझे देख कर गश खा कर गिर जाएगी कि उसका प्रेमी तीस साल का नौजवान नहीं, साठ साल का बूढ़ा है।... उसे साफ-साफ बता देना चाहिए।... यही ठीक होगा। लेकिन बताएँ कैसे? अब उन्हें अपने निर्णय पर कोफ्त होने लगी कि अपनी पुरानी तस्वीर क्यों लगाई और जन्म तारीख के साथ वर्ष क्यों नहीं दिया। उनके मन में आया कि अपनी प्रोफाइल को फौरन ठीक कर लेना चाहिए। किसी को धोखा देना ठीक बात नहीं। लेकिन अर्पिता के प्रेम भरे संदेश पाकर उनको लगने लगा कि हो सकता है, यह अर्पिता सचमुच प्यार करने लगी हो। फिर भी एक बार उसे अपनी उम्र के बारे में सच-सच बता देना चाहिए। फिर जो होना हो।
रामशरण ने कम्प्यूटर चालू किया। फेसबुक खोला, तो देखा अर्पिता का संदेश पड़ा है- ''आपका इंतज़ाऱ कर रही हूँ। कब आएँगे आप?''
रामशरण ने हिमम्त से काम लेते हुए संदेश भेजा- ''अर्पिता, तुम मुझे तीस साल का युवक समझ रही हो, लेकिन मैं साठ साल का आदमी हूँ। तुम्हारी-हमारी दोस्ती संभव नहीं। तुम मुझे माफ. कर देना। मैंने यह बात तुमसे छिपाई।''
अर्पिता का तत्काल संदेश नहीं आया। रामशरण घबराने लगे। कहीं ऐसा तो नहीं किअर्पिता नाराज हो गई हो। हो सकता है अब मुझसे बात ही न करे, या दोस्ती ही तोड़ ले। रामशरण अर्पिता के संदेश की प्रतीक्षा में व्याकुल होने लगे। थोड़ी देर उदास बैठे रहे, तभी अर्पिता का संदेश आ गया- ''आप की उम्र से मुझे क्या लेना-देना। मेरा प्रिय गीत है, 'ना उम्र की सीमा हो, न जन्म का हो बंधन। जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन'। मैं तो केवल आपका मन देख रही हूँ। वह अच्छा है। अभी भी जवान है। मैं इसी मन से प्यार करती हूँ। मान लीजिए अगर मैं भी साठ साल की कोई औरत होती तो क्या आप मुझे प्यार नहीं करते?''
रामशरण ने संदेश दिया, ''ज़रूर करता।''
अर्पिता ने संदेश दिया- ''बस, बात खत्म। आप मुझे दिल से चाहते हैं। मैं आपको चाहती हूँ। इसमें उम्र का क्या काम। आपने 'चीनी कम' फिल्म देखी थी न? जिसमें हीरो बूढ़ा और हीरोइन जवान थी। अब आप आ ही जाइए। एक बार आपको देख लूँ। आपके विचारों को तो मैं देखती रहती हूँ। आपको देखने की इच्छा है। तो, कब आ रहे हैं आप?''
अकेलेपन की त्रासदी भोग रहे रामशरण को लगा कि जीवन में रंग भरने का एक मौका हाथ लगा है तो इसे खाली नहीं जाने देना चाहिए। लेकिन घबरा भी रहे थे । खालीपन को भरने के लिए एक हजार किलोमीटर दूर बैठी अकेली युवती से मिलने जाना कहीं गलत न हो जाए। मुझ बूढ़े को देख कर अर्पिता का सारा जोश ठंडा पड़ जाएगा। जवानी का नशा काफूर हो जाएगा।
आखिरकार रामशरण ने हिम्मत करके रामपुर जाने का कार्यक्रम बना लिया। रास्ते भर वे यही सोचते जा रहे थे कि वे जो कुछ कर रहे हैं, वो गलत है। बुढ़ापे में एक युवती के साथ प्रेम-संबंध बढ़ा रहे हैं। समाज इसे पसंद नहीं करता। कल को उस युवती ने अपने प्रेमजाल में फाँस कर अगर कहा कि 'आप यहीं रहिए, मेरे साथ', तो फिर क्या होगा। यह भी हो सकता है कि वो मेरे घर आ कर ही रहने लग जाए। अगर ऐसा हुआ तो लड़कों पर क्या असर पड़ेगा। रामशरण ने तय कर लिया था कि अर्पिता से मिल कर वह साफ-साफ कह देंगे कि मैं अकेले रहना पसंद करूँगा। अर्पिता, मेरा चक्कर छोड़ दो।
आखिर रामपुर भी आ गया। स्टेशन के पास की अजंता होटल में रामशरण रुक गए, फिर अर्पिता को फोन किया-
''अर्पिता, मैं रामशरण। तुम्हारे शहर में हूँ।''
''वॉव, आप आ गए। तो सीधे घर आ जाएँ। यहीं रुके। घर पर रुकने की व्यवस्था है। एक कामवाली बाई भर रहती है साथ में। यहाँ कोई दिकक्त नहीं होगी।''
''नहीं, कोई बात नहीं। मैं यहीं एक होटल में रुक गया हूँ। थोड़ी देर बाद आता हूँ।''
''ठीक है। मैं आपका इंतज़ार कर रही हूँ। खाना मेरे साथ ही खाइएगा।''
रामशरण हँस पड़े और बोले, ''ठीक है, आ रहा हूँ।''
रामशरण जल्दी-जल्दी फ्रेश हुए, और अर्पिता के घर की ओर चल पड़े। रास्ते में फूलवाले की दुकान दिखी, तो एक बुके ले लिया। होटल से एक किलो रसगुल्ला भी।
थोड़ी देर बाद ही वे अर्पिता के घर के सामने खड़े थे। चार बटा बीस, विवेक नगर। रामशरण का दिल तेजी के साथ धड़क रहा था। अर्पिता से पहली बार मिल रहे हैं। उन्हें देखकर पता नहीं वो कैसा 'रियेक्ट' करेगी। वैसे अपने सफेद बालों को रामशरण काला करवा चुके थे, इसलिए साठ के नहीं, पचपन के आसपास लग रहे थे। कपड़े भी ठीक-ठाक पहन कर आए थे। जींस की फुलपैंट और टी शर्ट। स्मार्ट दिख रहे थे। मगर अर्पिता के मन पर उनकी यह छवि कितना असर डालेगी, यही देखना था।
रामशरण ने हिम्मत करके घंटी बजाई। थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला। सामने एक बुजुर्ग-सी महिला नज़र आई। उसने नमस्ते किया और कहा 'आइए'। वे समझ गए कि कामवाली बाई होगी। महिला ने उन्हें बड़े अदब से ड्राइंग रूम में बिठाया और बोली- ''आप बैठिए।''
इतना बोल कर बूढ़ी औरत भीतर चली गई। इस बीच वो पानी भी रख गई। रामशरण डर के मारे काँप रहे थे कि पता नहीं क्या होगा। कहीं ऐसा न हो कि अर्पिता झाड़ू ले कर निकले और उनकी पिटाई शुरू कर दे कि बूढ़े हो कर एक जवान लड़की से इश्क लड़ाते हुए शर्म नहीं आई। वे खामोश बैठ कर सामने रखा अखबार पलटते रहे। थोड़ी देर बाद वही बूढ़ी औरत उनके सामने खड़ी थी। वह अब सलवार-कुरते में थी और मंद-मंद मुसकरा रही थी। रामशरण के सामने बैठते हुए उसने कहा-
''बोलिए रामशरण जी, यात्रा में कोई तकलीफ तो नहीं हुई?''
''कोई तकलीफ नहीं हुई। ठीक रही यात्रा। अर्पिता कहाँ है?....आपकी तारीफ...?''
''मैं ही अर्पिता हूँ।'' महिला ने मुसक राते हुए ज़वाब दिया।
''क्या...? आ....आप अर्पिता हैं...?''रामशरण ने चौंकते हुए पूछा- ''अरे, मगर फेसबुक में तो...?''
''वो मेरी तीस साल पुरानी तस्वीर है।'' अर्पिता ने अब ठहाका, ''आपने तो अपने बारे में सच-सच बता दिया, मगर मैं नहीं बता पाई। मुझे लगा इसी बहाने आप आएँगे, तो खुद-ब-खुद असलियत जान जाएँगे। देखिए, आप भी अकेले हैं और मैं भी। समान उम्र वाले भी हैं। हम दोनों की दोस्ती फेसबुक तक ही क्यों सीमित रहें। फेस-टू फेस मिल कर सिलसिला आगे बढ़ाया जाए।''
इतना सुनना था कि रामशरण बेहोश हो गए। बहुत देर बाद उनको होश आया, तो देखा कि बूढ़ी अर्पिता सामने खड़ी है। उसके पास एक और वृद्ध महिला उसे निहार रही है।
रामशरण कुछ बोलने की स्थिति में नहीं थे। सिर नीचा किए बैठे रहे। मन ही मन रो रहे थे। क्या सोचा था, और क्या हो गया। उनका दिमाग ही काम नहीं कर रहा था कि क्या बोलें, क्या न बोलें।
बहुत देर तक रामशरण और अर्पिता भी मौन रहे। फिर मुस्कराने की विफल कोशिश करते हुए रामशरण ने कहा- ''अच्छा, मैं अभी चलता हूँ। तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही है।''
''आप यही आराम करें। शाम को बात कर लेंगे। लंबी यात्रा के कारण थकान स्वाभाविक है।''
''नहीं-नहीं, मैं अभी जाऊँगा। होटल में मेरी दवाइयाँ भी हैं। मैं शाम को आ जाऊँगा।''
''संकोच मत कीजिएगा। यहीं रुक जाइएगा। जब आपने प्यार का वादा किया है तो इसे निभा कर भी दिखाइए। क्या मैं सुंदर नहीं हूँ?''
रामशरण कुछ बोल नहीं पा रहे थे। सामने बूढ़ी अर्पिता का चेहरा देख-देख कर वे खुद पर बेहद खीझ रहे थे कि कहाँ फँस गया। रामशरण को अपने आप पर गुस्सा आ रहा था। अर्पिता की धोखाधड़ी उन्हें हजम नहीं हो पा रही थी। मगर वे गुस्से को पी कर वे बोले- ''नहीं-नहीं, ऐेसी बात नहीं है। मैं शाम को आऊँगा। मेरी कुछ जरूरी दवाइयाँ होटल में ही रह गई हैं।''
''ठीक है। दवाई का मामला है इसलिए आपको रोकूँगी नहीं। लेकिन शाम को जरूर आइएगा। रात का खाना हम साथ-साथ खाएँगे और....रात को यहीं रुकना है।''
''ठीक है। मैं आता हूँ।'' इतना बोलकर रामशरण तेजी के साथ बाहर निकले, फिर पीछे मुड़ कर ही नहीं देखा।