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Yogesh Suhagwati Goyal

Inspirational Others

5.0  

Yogesh Suhagwati Goyal

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मैनेजर साहब आपका शुक्रिया

मैनेजर साहब आपका शुक्रिया

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दिसम्बर १९७५ में हम मालवीय रीजनल इंजीनियरिंग कालेज जयपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग के स्नातक हो गये। थोड़ी जान पहचान की बदौलत कोटा की एक छोटी सी काटेज इंडस्ट्री में हाथों हाथ नौकरी मिल गयी। वेतन के नाम पर कुल ५०० रू. महीने मिलते थे। इस बीच जैसे जैसे नये विज्ञापन देखते, अपना आवेदन भी भेजते रहे। एक दिन अखबार में विज्ञापन देखा, पानी के जहाजों पर मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल इंजिनियरों को २६०० रू. महीने तक कमाने का अवसर। वैसे ये विज्ञापन किसी नौकरी का नहीं, बल्कि समुद्री इंजीनियरिंग प्रशिक्षण निर्देशालय बम्बई में मरीन इंजीनियरिंग के एक साल के प्रशिक्षण के लिये था। उन दिनों भारतीय मर्चेंट शिपिंग का विस्तार हो रहा था और मरीन इंजिनियरों की बहुत कमी थी। इसी के मद्देनज़र, शिपिंग मिनिस्ट्री ने एक नयी योजना शुरू की। मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के स्नातकों को एक साल के प्रशिक्षण के बाद मर्चेंट शिपिंग में बतौर जूनियर इंजिनियर नौकरीयां उपलब्ध करवाई जा रही थी। उस वक़्त हमको पानी के जहाजों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। लेकिन हमारे लिये ये अवसर इतना बड़ा था, बिना सोचे समझे अपना आवेदन पत्र भेज दिया। जैसे तैसे कोटा की काटेज इंडस्ट्री में ६ महीने काम किया और फिर नयी नौकरी की तलाश में घर बैठ गये।

कुछ दिन बाद समुद्री इंजीनियरिंग प्रशिक्षण निर्देशालय बम्बई से साक्षात्कार का बुलावा आया। साक्षात्कार के दौरान बड़ी मजेदार घटना हुई। हमसे पूछा गया, क्या तुम्हें मालूम है कि जहाज कैसे चलता है ? हमने कहा, जहाज के पीछे एक पंखा होता है, वही घूमकर जहाज को आगे धक्का देता है। और जहाज को घुमाया कैसे जाता है ? हमने कहा कि स्टीयरिंग नाम की कोई चीज होती है लेकिन हम उसके बारे में नहीं जानते | तुम जो भी बता रहे हो, ये सब तुमने कहाँ से सीखा ? हमने कहा, बाहर कुछ लोग बात कर रहे थे, वहीँ सुना। साक्षात्कार लेने वाले चारों सदस्य जोर जोर से हंसने लगे। तभी उनमें से एक सदस्य बोला, लेकिन हम सबको एक चीज की दाद देने पड़ेगी कि ये लड़का सच बोलता है और चीजों को जल्दी सीखता है। और तभी एक दूसरे सदस्य ने कहा कि सामने वाले कमरे में मेडिकल करवा लो।

इस तरह से हमको समुद्री इंजीनियरिंग प्रशिक्षण निर्देशालय बम्बई में प्रवेश मिल गया। प्रशिक्षण कोर्स १ नवम्बर १९७६ से शुरू होना था लेकिन उससे पहले, सबसे बड़ी समस्या हमारे सामने खड़ी थी। पूरे कोर्स का जिसमें कालेज, हॉस्टल, किताबें आदि सब मिलाकर १४,५०० रू. का खर्चा था। और हमारे पास इसका कोई इंतज़ाम नहीं था। हमारा छोटा भाई उदयपुर से इंजीनियरिंग कर रहा था। पिताजी बड़ी मुश्किल से उसका खर्चा उठा पाते थे। कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाये।

उन दिनों हमारे गाँव की पंजाब नेशनल बैंक में हमारे स्कूल का एक मित्र गिरिराज गोयल कैशियर के पद पर कार्यरत था। हम दोनों अपनी हर बात शेयर करते थे। उसी ने हमको सुझाव दिया, क्यूं ना बैंक से एजुकेशन लोन लिया जाये ? उसने ये भी कहा कि वो बैंक के मैनेजर से इसके बारे में चर्चा करेगा।

उस वक़्त पंजाब नेशनल बैंक के मैनेजर भगवान दास जी एक बहुत ही सुलझे हुए, समझदार, भले और मददगार इंसान थे। वे अपने पद के सीमा में रहकर सभी की मदद का हर संभव प्रयास करते थे। गिरिराज ने उनको हमारी पढाई और उसके बाद के उज्जवल भविष्य के बारे में बताया और मदद मांगी। उसी वक़्त उन्होंने हमको बैंक में बुलवाया और हर बात की विस्तार से जानकारी ली। हमारे सारे कागज़ देखकर जब वो संतुष्ट हो गये, तब बोले कि इस कुल खर्चे में से तुम्हारे पास कितना इंतज़ाम है ? हमने उनको अपनी जरूरत का पूरा हिसाब बताया। प्रवेश के बाद किसी भी शिपिंग कम्पनी से अनुबन्ध होना तय है। वो कम्पनी ४०० रू. महीने की क्षात्रवृत्ति देगी। उसके अलावा हम लोग जिस वर्कशॉप में अपनी प्रैक्टिकल ट्रेनिंग करेंगे, वो वर्कशॉप स्टाईफंड के रूप में १५० रू. महीना देगी। इस तरह करीब ६६०० रू. का इंतज़ाम हो जायेगा। इनके अलावा हमारी बाकी जरूरत करीब ८००० रू. की है। सारी बात समझकर उन्होंने हमारे सारे कागज़ अपने पास रख लिये और बोले, मुझे थोडा समय दो।

तीन दिन बाद मैनेजर साहब ने हमको फिर बैंक में बुलाया। उन्होंने बताया कि मेरे लोन के सिलसिले में वो जयपुर गये थे। वहां पर उन्होंने जोनल मैनेजर से विचार विमर्श किया। जोनल मैनेजर ने मेरा ८००० रू. का लोन स्वीकृत कर दिया है। चूंकि बैंक के नियम के अनुसार एक साल में ४००० रू. का ही लोन दिया जा सकता है, तुम्हारे लोन को हम दो वित्तीय वर्षों में दिखाकर देंगे। साथ ही उन्होंने मुझे ढेर सारी बधाई और मेरे उज्जवल भविष्य के लिए शुभकामनाएँ भी दी।

मैनेजर साहब, आपका बहुत बहुत शुक्रिया।


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