बुलबुले
बुलबुले
नितिन "अरे सुनती हो ..
नीति "क्या हुआ ?
नितिन "यहाँ आओ न ...
नीति दुप्पटे में हाथ पोंछती हुई नितिन के पास आ कर पूछती हैं
"क्या हुआ क्यों बुला रहे हो?"
नितिन " क्या काम में लगी हुए हो देखो न इतना अच्छा मौसम है काले काले बादल छा गए हैं बारिश होने ही वाली है बस।"
नीति "अरे कुहू सो रही हैं उठने वाली ही होगी सोचा उसका नाश्ता बना लूँ ।"
नितिन " अरे बैठो न पास में क्या हर समय काम काम में लगी रहती हो। अच्छा तुम्हें कुछ याद है नीति जब हमारी नई नई शादी हुई थी। क्या पल थे वो न "
नीति भी सुकून से कुर्सी पर बैठ कर काले बादलों को देखते हुए यादों में खोई जा रही थी...
"कुहू के होने के पहले हम बारिश में घूमने निकल जाया करते थे। और हमारे पूरे कपड़े गीले हो जाते थे ठंड में कांपते हुए तुम बाइक पर मुझसे लिपट के बैठी रहती थी और तुम्हारा भीगा हुआ बदन लटों से टपकता हुआ पानी ......"
"अच्छा हाँ याद आया.... कल तुमसे बोला था मेरी सफेद वाली शर्ट धुलने के लिए धुल दी क्या?"
नीति " अरे हाँ ! तेज़ी से कुर्सी से उठकर भगती हुए बोली छत पर कपड़े पड़े है आपकी शर्ट भी मै लेकर आती हूँ ।"
नीति सारे कपड़े बटोरते हुए नीचे आती हैं।
जल्दी से सारे कपड़े तह लगा कर रखने के बाद वह फिर से आ कर बैठ गई कुर्सी पर।
नितिन नीति का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींच ते हुए एक बात कहूं नीति " तुम कितनी सुन्दर लगती थी शादी के बाद तुम्हे देखते हुए नजर नहीं थकती थी मेरी।
नीति बालों को कान के पीछे समेटे हुए "
" क्या अभी नहीं लगती हूँ सुंदर"
नीति को अपने और करीब खींचते हुए नितिन नीति को इतने पास कर लेता है कि नीति को सांसों की गर्माहट महसूस होने लगती "अब तो और भी खूबसूरत लगती हो"।
नितिन के मुँह से अपने लिए प्यार भरे तारीफ के शब्द सुन कर नीति का रोम रोम खिल उठा, मौसम भी ऐसा था और कुहू उनकी पांच साल की बेटी भी सो रही थी।
दाम्पत्य जीवन में बच्चे होने के बाद ऐसे पल बहुत किस्मत से नसीब होते है।
नीति जोर से नितिन के गले लग जाती हैं बस डूब जाने को मन कर रहा था उसका इन पलों में , सब भूल कर खो जाना चाहती थी वो, नितिन भी नीति के बहुत करीब था तभी जोर से बादल के गरजने की आवाज हुई। और नितिन नीति को अलग करते हुए बालकनी में आकर बोला अरे वाह बारिश शुरू हो गई । नीति भी बहुत खुश थी ठंडी ठंडी पानी की बोछार से तन बदन भीग उठा था नीति का, बारिश ने नीति के मन में आग में घी डालने वाला काम कर दिया था। तभी नितिन ने नीति के कानों के पास आकर गालों को चूमते हुए कहा "मौसम के मिजाज को समझ रही हो तुम इतना तो जान ही गई होगी क्या चाहत है इस समय मेरे मन में और नीति शर्माएं जा रही थी एक नव वधू की तरह तभी नितिन ने नीति का हाथ हाथो में जोर से दबाते हुए कहा" नीति"
",हाँ नितिन!"
"एक कप चाय और पकोड़े खिला दो न यार।"
नीति के मन में उठ रहा प्यार का बुलबुला बड़ी जोर से फूट गया। गुस्सा तो बहुत जोर का आ रहा था उसे तभी कुहू के रोने की आवाज आ गई नीति की तंद्रा टूट गई तुरंत उसके पास भागी। कुहू को संभालते हुए वो चाय और पकोड़े बनाने में व्यस्त हो गई। गरमागरम चाय पकोड़े देखकर नितिन का खुश हो गया। कुहू भी बारिश देख कर चहक उठी खूब नाव बना कर पानी में बहाया, खूब सारी कविताएं गाई दोनों ने नन्ही कुहू के साथ ।
सच शादी के बाद बच्चों के साथ शायद इसी तरह से बारिश का सच्चा आंनद लिया जा सकता है।