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Pragati Tripathi

Drama

1.4  

Pragati Tripathi

Drama

प्यार या जरूरत, मतलब के रिश्ते

प्यार या जरूरत, मतलब के रिश्ते

6 mins
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कमला जी ने जब सुना कि बेटा किसी और लड़की से प्यार करता हैं तो उनके कदमों तले अरमानों की जमीन खिसक गई, सर पर हाथ रखकर उस पल को कोसने लगी जब लड़के को इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए दूसरे शहर भेजा था और रो रोकर अपने आपको दोष देने लगी... मैंने तो ऐसा कोई पाप नहीं किया था सबके साथ अच्छा व्यवहार ही किया फिर ये मुझे किस बात की सजा मिल रही हैं"।

"अशोक जी भी उदास बैठे थे, तभी नगेंद्र जी आए जो की अशोक के पारिवारिक मित्र थे। उन्होंने अशोक जी को समझाते हुए कहा - देख अशोक हमारा जमाना अलग था और अभी अलग तो अपने आपको इस माहौल में ढालने की कोशिश करो नहीं तो जिंदगी कष्टकारी हो जाएगी... क्या कर सकते हो अगर अतुल नहीं मान रहा हैं?... तभी नगेंद्र जी की बात को बीच में ही काटते हुए अशोक जी ने कहा.. मैं जानता हूं कि ये हमारा समय नहीं हैं जो बाबूजी की बातों और उनके सम्मान के लिए हम अपने आपको कुर्बान कर देते थे ताकि उनका सम्मान कम ना हो.. अब जमाना बदल गया हैं और अच्छा ही है... हम भी नहीं चाहते कि हम अपनी पसंद अपने बच्चे के ऊपर थोपें... । तो दिक्कत क्या है लड़की तुम्हारे जात की नहीं है " - नगेंद्र ने कहा। "लड़की हमारे जात की नहीं होती तो भी चलती, ये लड़की अलग क्षेत्र की है जिसकी भाषा भी अलग हैं। हमारे रीति-रिवाज, संस्कार को भी नहीं जानती, हम उसके रीति-रिवाज, भाषा को नहीं समझते... क्या वो हमारे साथ सामंजस्य बिठा पायेगी। मेरी छोड़ो कमला कैसे सामंजस्य बिठा पायेगी उसके साथ। यही सोचकर थोड़ी चिंता हो रही हैं, बेटे को ये समझ नहीं हैं कि शादी दो परिवारों के बीच होती है न कि दो लोगों के बीच... लेकिन आजकल तो बस पति-पत्नी ही एक-दूसरे को अपना समझते हैं, माता-पिता के बारे में नहीं सोचते हैं और भी बहुत सारी बातें हैं, बेटे को लेकर भी चिंता हैं जो वो अभी नहीं समझ पा रहा हैं"।

"क्यों आपलोग उसे अपने रीति-रिवाज बताइएगा, सीख जाएगी आखिर तुम्हारे घर की बहू बनने जा रही हैं। तुम लोगों के साथ ही रहने वाली है - नगेंद्र ने कहा.....नहीं नैना हमारे साथ नहीं रहेगी वो भी जॉब करती हैं - अशोक ने कहा। हां तो अब तुम लोग अतुल के साथ ही रहोगे ना आखिर कब तक अकेले रहोगे, भाभी की तबीयत तो वैसे भी सही नहीं रहती हैं - नगेन्द्र ने कहा। हां - एक लंबी सांस भरते हुए अशोक जी ने कहा।

अतुल को बहुत समझाया, लेकिन कुछ परिणाम न निकला"।

"अतुल की जिद के आगे किसी की एक न चली, अशोक जी और कमला जी ने बच्चे की जिद के आगे घुटने टेक दिए और उन दोनों का विवाह कर दिया। हुआ वही जिसका अशोक जी को डर था। कुछ महीने बाद दोनों ये सोचकर बेटे के घर गए कि अब बची-खुची जिंदगी आराम से गुजारेंगे, बच्चों के साथ ही रहेंगे लेकिन कुछ ही दिनों में बहुत कुछ देख लिया। नैना उनसे बात नहीं करती, बस अपने में लगी रहती और अतुल भी नैना की हां में हां मिलाता। दोनों ऐसे दिखाते कि उनके पास समय ही नहीं हैं। दोनों नहीं चाहते कि वे उनके साथ रहें, उन्हें पार्टी करने में परेशानी होती।

मां बाप के रहते शराब और कबाब का दौर नहीं चल पा रहा था"। 

"अशोक जी ने सोच लिया कि अब वो अपने घर ही रहेंगे कम से कम दोस्त रिश्तेदार तो अपने हैं, जहाँ उनका अपना समाज हैं। धीरे-धीरे समय बीतने लगा एक दिन पता चला कि नैना गर्भवती है कमला जी के खुशी का ठिकाना नहीं रहा, सारे मोहल्ले में उन्होंने मिठाईयां बांटी और अशोक जी से कहने लगी जल्दी ही चलो, शुरू के दो - तीन महीने देखभाल की जरूरत रहती है। इसपर अशोक जी ने कहा कि अतुल ने एक बार भी नहीं बुलाया ऐसे कैसे जाओगी.... अरे अपने घर जाने में बुलावे का इंतजार क्यों करना.. लगता हैं तुम सब भूल गई.... हां मैं भूल ही गई, मुझे बहू के पास जाना है" - कमला जी ने कहा।

"ठीक हैं मैं अतुल से टिकट के लिए कह देता हूं। दूसरे दिन अशोक जी ने अतुल को फोन लगाया और कहा तुम्हारी मां आना चाहती हैं, बहू की देखभाल के लिए... इसपर अतुल ने कहा अभी सब ठीक है, चिंता की कोई बात नहीं, जब डिलीवरी होगी तो मैं आपलोग को बुला लूंगा। अशोक जी को यही उत्तर की अपेक्षा थी लेकिन कमला का दिल टूट जाएगा.. यही सोच रहे थे तभी कमला ने कहा... क्या बात हुई, अतुल कुछ लाने के लिए भी बोल रहा था क्या, मैं आज मठरी और गुझिया बना लूंगी और भी कुछ बनाकर लाने के लिए कहा उसने.. नहीं उसने कुछ नहीं कहा और बोला की अभी आने की जरूरत नहीं, डिलीवरी के समय बुला लूंगा" - अशोक जी ने एक सांस में कह दिया।

"कमला जी की सारी खुशी और उत्साह यह सुनते पल भर में शीशे की तरह चूर चूर हो गयी। उस दिन से ही वो उदास और दुःखी रहने लगी। बार-बार बहू को देखने को जी करता लेकिन मन मार लेती। अब उनकी तबीयत भी नासाज रहने लगी, सबसे बड़ी बीमारी जो लग गई थी..

अपनों से परायापन की। समय बीतने लगा.."

"डिलीवरी होने में एक महीना बाकी था , अशोक जी खाना खाने बैठे थे तभी अतुल का फोन आया, उसने कहा कि मैं आपलोग का टिकट करा देता हूं, आपलोग आ जाइए। अशोक जी ने अच्छा कह... फोन रख दिया इस बार उन्होंने कुछ और ही सोच रखा था। कमला जी यह सुनते खुश हो गई मां जो ठहरी सारी तैयारी कर ली, अशोक जी उनकी खुशी को जानकर कुछ नहीं बोले। नियत समय पर वो बेटे के घर पहुंच गए लेकिन इस बार तो नजारा बदला - बदला था। बहू, सास - ससुर पर प्यार लुटाए जा रही थी... बेटा भी हर काम में अशोक जी की सलाह ले रहा था और उसने कहा कि अब आपलोग यही रहिए गांव जाने की जरूरत नहीं, कमला जी फूले न समाई लेकिन शायद अशोक जी दूरदर्शी थे इसलिए उनकी चिकनी - चुपड़ी बातों में नहीं आए"। 

"ऑपरेशन के द्वारा नैना को बेटा हुआ, एक महीने होने को थे.. कमला जी ने बच्चा जच्चा दोनों की खुब सेवा की। नैना भी अब ठीक हो गई, उसका घाव सूख गया। दूसरे दिन अशोक जी ने कमला को बोला... परसों हम जा रहे हैं इसलिए सारा समान पैक कर लो। इसपर अतुल ने कहा - परसों कैसे जाएंगे और क्यों जाएंगे, आपलोग अब यही रहिए। महीने छह महीने पर एक बार गांव चले जाइएगा। मांजी मैं अकेली बच्चे को कैसे पालूंगी.. फिर ऑफिस कैसे.... किसपर बच्चे को छोड़कर.."।

"अशोक जी ने कहा , मैंने टिकट ले लिया हैं कि हम परसों ही वापस जा रहे हैं, अपना घर छोड़कर कब तक यहां रहेंगे। बेटा बहू दोनों गिड़गिड़ाने लगे। कमला जी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अशोक जी इतने कठोर क्यों बन रहे हैं। बेटे बहू की सारी कोशिशें नाकाम रही उन्हें रोकने की। नियत समय पर अशोक और कमला जी अपने रेलवे स्टेशन के लिए रवाना हो गए"। 

"घर पहुंचने के बाद कमला जी ने गुस्से में पूछा आपने ऐसा क्यों किया? इस पर अशोक जी ने कहा - तुम इतना ही समझो कि जब उन्हें हमारी जरूरत हैं तो हमें रोक रहे हैं, जब काम निकल जाएगा फिर हमारी अहमियत इन टूटी हुई कुर्सियों से अधिक नहीं होगी। मैंने जो कुछ भी किया बहुत सोच समझकर किया।" 


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