रिश्तों में प्यार जरूरी है
रिश्तों में प्यार जरूरी है
गर्मियों की छुट्टियां कल से शुरू होने वाली थी। कमला के सर में दर्द बढ़ता जा रहा था। “एक तो बच्चे दिमाग खायेंगे, घर में रहेंगे तो तरह-तरह के खाने की फरमाइशें होंगी, ये नहीं होता की दस दिन के लिए कहीं घुमाने ले चलें.. बस चौबीस घंटे नौकरानी बनी रहो.. मुझे कभी आराम मिलेगा या नहीं। ये कम न था की हर बार की तरह इस बार भी रोहीणी जीजी पधार रही हैं उनके नखरें अलग सहो। मैं बता रही हूँ एक दिन ना मैं घर छोड़कर कहीं चली जाउंगी" - परेशान कमला ने अपने पति योगेश से कहा।
हमेशा की तरह योगेश ने उसके सवाल का जवाब न देते हुए, खाने का डिब्बा उठाया और ऑफिस लिए निकलने लगा... तभी गुस्साई कमला ने फिर कहा - "तुम कुछ मत बोलना, तुम्हें तो सबकी नजर में अच्छा बने रहना है ना.. बस मेरी ही नजर में गिरो.. मैं मरुँ या जियूं इससे तुम्हें कोई मतलब नहीं।"
योगेश ऑफिस चला गया, ऐसा नहीं था की योगेश कुछ समझता नहीं था, बस रिश्तों को सहेज कर रखना चाहता था।
रवि और रोमा भी कहने लगे - "मम्मा चलिए ना हम भी किसी हिल स्टेशन पर चलते हैं। आपको पता है सुमन के पापा उसे दार्जलिंग ले जा रहे हैं। मनु शिमला जा रही है। हम लोग ही कहीं नहीं जाते हैं।"
"बेटा तेरे पापा सारे पैसे बुआ के लिए बचाकर रखते हैं, हमें घुमाने ले जाएंगे तो खर्च न हो जाएंगे।"- कमला ने योगेश पर तंज कहते हुए कहा।
"तुम लोग भी मुझसे ही कहना, पापा के सामने तो आज्ञाकारी बने रहते हो और तुम रोमा.. मुझसे कहती हो मम्मी आप बहुत लड़ती हैं तो जाओ अपने पापा के पास। वैसे भी इस बार भी हम कहीं नहीं जा रहे हैं तुम्हारी लाडली बुआ आ रही हैं।"
तभी रवि ने कहा- "मम्मा ये हर बार बुआ क्यों आ जाती हैं, उनके कारण हम कहीं नहीं जा पाते।" रवि ने कमला की मन की बात कह दी।
"कल ही आ रही हैं बुआ और उनके बच्चे। चलो रवि तुम पढ़ाई करो, सुमित और प्रिया तुम दोनों के ही कमरे में रहेंगे, मैं दो तकिये लेकर आती हूँ, रोमा तुम चादर बदल दो"-कमला ने कहा। रवि मुॅंह बनाते हुए पढ़ाई करने चला गया।
दूसरे दिन नियत समय पर रोहिणी जीजी और उनके बच्चे घर आ गये। मैंने पूछा, "जीजी कोई तकलीफ तो नहीं हुई ना..."
"अरे नहीं, सुबह सात बजे की ट्रेन थी और दस बजे पहुंच गये, बल्कि आज तो ट्रेन बिलकुल समय पर पहुंची हैं।" मन ही मन कमला रेलगाड़ी को कोसने लगी.. इतनी जल्दी क्या थी.. आराम से आती थोड़ी लेट ही हो जाती तो क्या हो जाता।
दूसरे दिन से तो कमला का सारा समय रसोईघर में गुजरने लगा। बच्चों की फरमाइशें शुरू थी.. मम्मी हमें मैगी खाना है तो कभी आलू पराठा, सबकी अलग-अलग फरमाइशें। जीजी से ये भी नहीं होता कि कह दें कि मैं बना देती हूँ। इसी तरह पन्द्रह दिन गुजर गए, सबकी फरमाइशें पूरी करते, बच्चों को घूमाते-फिराते। पैसों की धज्जियाँ उड़ गयीं.. रोज-रोज बच्चों की डिमांड कभी पिज्जा तो कभी बर्गर।
दूसरे दिन सुबह अचानक जीजी के घर से समाचार आया कि उनकी सास गिर गई हैं और उनका पैर टूट गया है, जीजी को दूसरे दिन ही जाना पड़ रहा था। कमला ने कहा, “जीजी आप चिंता मत करिए सब ठीक हो जाएगा।” (लेकिन कमला मन ही मन खुश थी, अब आएगा मजा, मेरे ऊपर बहुत आराम किया गया)
“क्या ठीक हो जाएगा, अब तो मेरी शामत आ गई, सारा आराम निकल जाएगा, अब चौबीस घंटे सासू जी की सेवा में रहना पड़ेगा, “रोहिणी मन में सोच रही थी।
“जीजी मैं अभी मार्केट से आती हूँ।”
”सुनो, शायद तुम हम लोगों के लिए कपड़े लेने जा रही हो तो पिछली बार की तरह ऐसे-वैसे कपड़े मत ले आना। मेरे ससुराल में सबके सामने मेरी नजरें झुक गई थीं। मेरी देवरानी के मायके वाले ब्रांडेड कपड़े ही देते हैं इसलिए ब्रांडेड कपड़े ही ले आना, ताकि मेरी नाक नीची ना हो।”
योगेश और कमला अपना सा मुॅंह लिए मार्केट चले गए। कमला सोच रही थी कि घर का बजट ऐसे ही बिगड़ा हुआ है और अब ये नया तमाशा, ब्रांडेड कपड़े लेने में तो कम से कम पांच-दस हजार का खर्चा आएगा। रास्ते में कमला ने योगेश से कहा उस गली में डेनिम का शोरूम है। योगेश कुछ क्षण वहीं खड़ा रहा फिर आगे वाली दुकान जहां से वो हमेशा से कपड़े लेते थे, उस दुकान में चला गया। कमला योगेश के बदले हुए रूप को देख हैरान थी शायद आज योगेश भी ग़लत का साथ देने को तैयार न था।
दोनों घर आए और योगेश ने रोहिणी को कपड़े का थैला देते हुए कहा- “मैं अपने सामर्थ्य के अनुसार कपड़े लाया हूँ, तेरे परिवार के साथ तो मैं प्रतियोगिता नहीं कर सकता। रिश्तों में प्यार जरूरी होता है दिखावा नहीं।” पहली बार रोहिणी ने चुपचाप कपड़ों का थैला रख लिया।
तभी रोहिणी ने रवि और रोमा के लिए लाए कपड़े को निकाल कर उन्हें दिए तो रवि ने कहा, “ये ब्रांडेड कपड़े हैं बुआ?”
तभी सुमित ने तपाक से कहा - "नहीं ये तो सेल...."
"चुप चल घर तेरी पिटाई तो निश्चित है, बहुत जुबान चलने लगी है तेरी।"
"अरे जीजी बच्चा है, जाने दिजिए।”
आज रोहीणी, कमला से नजरें नहीं मिला पा रही थी।