दबंग

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तारकेश्वर सिंह का नाम शहर के जाने-माने धनी व्यक्तियों और दबंगों में शुमार था। सारा शहर उनके कड़े स्वभाव से परिचित था। कभी - कभी समाज में अपना रूतबा बनाये रखने के लिए कुछ लोगों की सहायता भी कर देते थे और दूसरी तरफ अपना दिया वसूल करना भी खूब जानते थे। इस बार उनके चाटूकारों ने उन्हें एम पी के लिए चुनाव लड़ने की सलाह दी, ये प्रस्ताव उनको अच्छा लगा। उन्होंने इस बार चुनावी मैदान में उतरने की ठान ली और उन्हें चुनाव में विजेता बनाने का बीड़ा उनके इकलौते सुपुत्र भानु सिंह ने उठाया। भानु सिंह अपने पिता के बल पर सब पर रोब जमाते फिरते लेकिन सूझबूझ में पिता के सामने नहीं टिकते, चौथी फेल थे लेकिन रुआब कम न था। गठ्ठा हुआ शरीर था और पहलवानी का शौक रखते थे।

चुनाव के दिन आने से दो महीने पहले से ही भानु सिंह ने प्रचार - प्रसार शुरू कर दिया। तारकेश्वर सिंह का चुनाव छाप "हल" था। भानु सिंह ने वोटरों को लुभाने के लिए चुनाव चिन्ह को इंकित कर, टोपी, मफलर और टी - शर्ट बनवाए और रोज वो अपने ऑफिस में इन चीजों का वितरण करने लगे। वोटर भी मौका देखकर रोज दूर - सूदूर क्षेत्र से इन कपड़ों को लेने ऑफिस आ जाते और बदले में वोट देने का वायदा कर वापस चलें जाते। इसके साथ-साथ पुरुष वोटरों को लुभाने की सबसे अच्छी चीज 'शराब' भी बांटी जाने लगी थी। भानु सिंह को जीत पक्की नजर आ रही थी।

चुनाव को अब एक महीने ही बचे थे, भानु सिंह ने दुगुना जोर लगाना शुरू किया। ऐसा नहीं था कि आपोजिशन कोशिश नहीं कर रहा था लेकिन उन्हें पता था कि उनकी पहुंच और पैसा कहां तक है फिर भी वो अपना दम - खम लगा रहे थे। एक दिन भानु सिंह के ऑफिस में एक लड़की भी टोपी, टी - शर्ट और मफलर लेने आई। भानु सिंह की जैसे ही उसके ऊपर नजर पड़ी वो मोहित सा हो गया। लड़की दिखने में काफी सुंदर, मोहिनी मुस्कान, मोरनी सी आंखें, छरहरा बदन, कोई भी उसकी खुबसूरती पर फिदा हो जाए, वैसे भी भानु सिंह दिलफेंक आशिक थे, ये जगजाहिर था। उन्होंने अपने आदमी से उसके बारे में सबकुछ पता करवा लिया। लड़की, गांव चमोली की रहने वाली थी, पिता की घर में ही छोटी सी चाॅकलेट और लेमनचूस की दुकान थी.. संपत्ति के नाम पर एक छोटा सा मिट्टी का घर और घर से सटे ही थोड़ी सी जमीन थी। एक ही लड़की थी, जिसका नाम -' लाजो' था।

भानु सिंह लाजो पर ऐसा लट्टू हुआ कि उसने ठान लिया, चाहे कुछ भी हो जाए... लाजो को ही अपनी दुल्हन बनायेगा। अब भानु सिंह का मन चुनाव प्रचार में नहीं लग रहा था, किसी न किसी बहाने चमोली गांव में एक चक्कर लगा लेते। कहते हैं ना "इश्क - मुश्क छिपाए नहीं छुपते", ये बात गांव में आग की तरह फैल गई। खबर तारकेश्वर सिंह के कानों तक भी पहुंची, सुनकर गुस्से से लाल हो गए फिर कुछ सोचने के बाद शांत हुए और भानु सिंह को अपने पास बुलाया।

भानू सिंह के आने पर पूछा, "मैं जो कुछ सुन रहा हूं, क्या वो सच है? तुम उस लाजो से शादी करना चाहते हो।"

इसपर भानु सिंह ने हिम्मत जुटाते हुए कहा," ह.. हां.. पिताजी ये बिलकुल सच है, "मैं उससे शादी करना चाहता हूं।"

"शाबाश! मैं तुम्हारी शादी लाजो से जरूर करूंगा। रघुवीर तुम जाओ और लाजो के पिता को हमारा पैगाम दे दो कि हमने उसे शादी की बात करने के लिए बुलावा भेजा है," तारकेश्वर सिंह ने अपने विश्वस्त रघुवीर से कहा।

रघुवीर ने कहा, "साहब तनिक इधर सुनिए"!

रघुवीर, तारकेश्वर सिंह का खास आदमी था, वो कोई भी फैसला उसके सलाह के बिना नहीं करते थे। उनका शुभचिंतक था, तारकेश्वर सिंह ने विपरीत परिस्थितियों में उसका साथ दिया था। तब से वो उनकी सेवा में लगा हुआ है।

हां बोलो, रघुवीर... क्या कहना चाहते हो?

"मालिक, क्या आप नीच जात वाले की बेटी से भानु बाबू का विवाह करेंगे ? आप तो ऊंच - नीच बहुत मानते हैं, ये बात मुझे समझ नहीं आयी!", रघुवीर ने कहा।

"मैंने ऐसे ही ये रिश्ता स्वीकार नहीं किया, रघुवीर! बहुत सोच समझकर ये फैसला किया है। इसके पीछे दो कारण हैं, पहला कि भानु को तो तुम जानते हो, दिमाग है नहीं और बचपन से ही जिद्दी स्वभाव का है, जो कुछ पसंद आ गया तो उसे वो चीज या वस्तु किसी भी हालत में चाहिए इसलिए मैंने सोचा कि कही हड़बड़ी में ये कोई ऐसा भूल न कर बैठे जिससे हमारी छवि.. जनता की नजरों में धूमिल न हो जाए। दूसरी बात, मेरे इस कदम से दलित और हरिजन के मन में हमारे प्रति सहानुभूति जगेगी और ज्यादा से ज्यादा वोट हमें ही मिलेंगे फिर हमारी जीत सुनिश्चित है।"

रघुवीर मालिक की बात समझ गया। इधर... जब लाजो के पिता राम प्रसाद ने जब, ये बात सुनी कि भानु सिंह की नजर उनकी बेटी पर है तो बेटी के भविष्य को लेकर चिंतित हो गये। लाजो की शादी पहले से ही तय कर रखी थी... उसपर अब ये नया बखेड़ा शुरू हो गया। क्या करें कुछ समझ नहीं आ रहा था ? हैसियत, कद, दौलत, सब में छोटा हूं, क्या करूंगा मैं? अभी यहीं सब बातें सोच रहा था तभी रघुवीर वहां आया और तारकेश्वर सिंह का पैगाम सुना दिया। राम प्रसाद ने सारी व्यथा कह डाली। वापस जाकर तारकेश्वर सिंह को रघुवीर ने सारी बातें बताई। दूसरे दिन लाजो का होने वाला ससुर, लाजो के घर जाकर रिश्ता तोड़ आया। अभी राम प्रसाद उस बात का शोक मना ही रहा था तभी रघुवीर वहां आया और हंसते हुए बोला, "अब तो रिश्ते से इंकार नहीं है ना तुम्हें!" कमलेश तो शादी से पीछे हट गया।

राम प्रसाद सारी बातें समझ गया कि ये सब तारकेश्वर सिंह का किया हुआ है। तारकेश्वर सिंह ने अपने बल का प्रर्दशन कर दिखाया था, उनके एक बार कहने पर ही लड़के वाले डर के मारे पीछे हट गए। अब राम प्रसाद के पास शादी के लिए हां बोलने के अलावा कोई चारा ना था और न चाहते हुए भी अपनी बेटी का ब्याह... उस भानु सिंह से करना ही पड़ा। सारे गांव ने तारकेश्वर सिंह के गुण गाए और उनकी छवि साफ - सुथरी बन गई। कुछ दिन बाद चुनाव हुए और तारकेश्वर सिंह भारी मतों से विजई हुए।


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