अपने - पराये

अपने - पराये

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दोनों बहुओं से खुश होकर अम्मा जी ने अपने जेवर दोनों को दे दिए, आशा और उषा ने कहा भी कि "आप पहनिए हमारे पास तो गहने हैं"... तो अम्मा जी ने कहा - "अरे बिटिया अब तो मैं बूढ़ी हो गई हूं ,अब गहने मेरे किस काम के अब तो मुझे ये चुभते हैं, तुम दोनों नई नवेली दुल्हनें हो तुम पहनो, तुम पर ज्यादा अच्छे लगेंगे।" दोनों बहुएं उन्हे खुश करने का कोई मौका नहीं छोड़ती। अम्मा को भी यकीन हो गया कि अब उनका बुढ़ापा अच्छे से कटेगा।

"क्या हुआ अम्मा जी? आपने ये चादर क्यों हटा दिया, आज सुबह ही धुली हुई चादर बिछाई थी मैंने।" तभी परबतिया एक बाल्टी पानी और झाड़ू लेकर आई और कमरे को धोकर कर चली गई।

"अरे बहू एक दूसरी चादर लाकर बिछा दे, फिर बताती हूं" - अम्मा जी ने कहा।

"उषा ने दूसरी चादर बिछा दी, अब तो बताइए अम्मा "- उषा ने कहा। 

"ननकू का बेटा मेरे कमरे में घुस आया था और उसकी गेंद मेरे पलंग पर आ गिरी इसलिए कमरे की सफाई कर इसे शुद्ध करवाया। तुमलोगों से हजार बार कहा कि काम करने वाले के बच्चों को घर के आसपास मत खेलने दो, ऊपर से ये अछूत हैं।"

कुछ महीने बाद अम्मा जी को एक भयानक बीमारी ने जकड़ लिया, सारे बदन में घाव हो गया। आशा ने तो महेश से कह दिया " मैं अम्मा के कमरे में नहीं जाऊंगी। कल से परबतिया ही उनका सारा काम करेगी"।

एक - दो दिन साफ -सफाई करने के बाद, परबतिया ने साफ मना कर दिया, "मैं नहीं जाउंगी अम्मा के कमरे में, मुझे घिन आती है।" दो दिन हो गये कमरे की सफाई किए हुए, कोई तैयार नहीं हो रहा था अम्मा की सेवा करने के लिए। 

अम्मा आशा बहू उषा बहू के रट लगाए रहती लेकिन कोई न कोई बहाना बनाकर दोनों उनको टाल देती।

उषा ने बड़ी बहू आशा से कहा - "दीदी अब मुझसे अम्मा जी का कमरा साफ़ नहीं किया जाता, कितनी बदबू आती है। "हां छोटी तू ठीक कहती हैं मैं सोच रही थी क्यों न ये बात रधिया से कहा जाए वो बूढ़ों की सेवा करने के लिए लालाईत रहती है" - आशा ने कहा। "दीदी पर अम्मा जी मानेंगी, वो तो नीचे जात का छूआ पानी भी नहीं पीती" - उषा ने कहा। "ख़ूब मानेंगी" - आशा ने कुटिल मुस्कान छेड़ते हुए कहा।

रधिया तलाकशुदा थी और बिलकुल अकेली थी लोगों के घर काम कर अपना गुजारा करती थी।

दूसरे दिन दोनों बहुओं ने अम्मा जी के लंबी उम्र की कुशलता हेतु तीर्थ यात्रा के नाम पर निकली और अपने मायके पहुंच गयीं। एक -दो महीने ठाठ से गुजारी।

इधर दूसरे दिन रधिया अम्मा के कमरे में गई, उसे देख अम्मा "चिल्लाई तू यहां?".. "हां अम्मा जी आपकी सेवा करने आयी हूं।"

"मगर मेरी बहूएं।"

"जी उन्हीं ने मुझे ये पुण्य का काम दिया है। आप तो हमारे लिए भगवान के समान हैं, आपकी सेवा से हमें पुण्य ही मिलेगा"। रधिया ने अम्मा जी के कमरे में जाकर मल - मूत्र को साफ कर, पूरे कमरे की सफाई की। उनके घाव धोने, मरहम-पट्टी किया, जो कमरा बदबूदार था अब वो फिनाईल की खुशबू से भर गया। आज अम्मा जी को सारे रिश्तों की असलियत पता चल गई थी, आंखों में आसूं भरें एकटक रधिया को देखे जा रही थीं"। 

"आज उन्हें अहसास हुआ की वास्तव में अछूत कौन है"। अम्मा ने रधिया को खूब आशीर्वाद दिया।

धीरे-धीरे अम्मा जी के सेहत में सुधार आने लगा। बीमारी ने अम्मा जी को अपने और परायों का अंतर समझा दिया। अम्मा जी के ठीक होने की खबर सुनते ही दोनों बहुएं मायके से वापस आ गई और अम्मा जी से कहा - "भगवान ने हमारी प्रार्थना सुन ली और देखिए आप बिलकुल ठीक हो गईं। हमने आपके सेहत में सुधार हेतु कितने मंदिरों में भगवान से प्रार्थना की, बहुत दान - पुण्य किया और देखिए हमारी प्रार्थना रंग लाई और आप बिलकुल स्वस्थ हो गईं।"

तभी वहां रधिया आयी और अम्मा जी के कमरे की सफाई कर उनके लिए खाना बनाने लगी। 

"अरे तू यहां क्या कर रही हैं अब अपने घर जा ! अम्मा जी तेरे हाथ का खाना पीना नहीं कर सकती" - आशा ने कहा।

"हां हां दीदी ने सही कहा" - उषा ने आशा की हां में हां मिलाई।

"बहू जब तुम दोनों मुझे छोड़कर मेरी लंबी और स्वस्थ होने की कामना करने अपने मायके गई थी ना तब इसी ने मेरी सेवा की, मेरे खाने पीने का ध्यान रखा। आज अगर मैं स्वस्थ हूं और जीवीत हूं तो सिर्फ रधिया की बदौलत। मैं ही पागल थी जो ऊंच नीच का रोग लगाए बैठी थी लेकिन अब मेरा पापी मन भी पावन हो गया है। आज से रधिया ही मेरी देखभाल करेगी और मेरी सारी जायदाद की वारिस भी यही होगी, मैंने इसे गोद ले लिया है। आशा और उषा बहू तुम दोनों मुझसे कह रही थी ना की तुम्हारे पास गहने हैं तो मैंने जो तुम दोनों को गहने दिए थे वो तुम रधिया बेटी को दे दो, देखो इसकी कलाई, गला, कान सब सूना पड़ा है"- अम्मा जी ने कहा।

अंतिम बात सुनते ही दोनों बहुएं चक्कर खाकर गिर पड़ीं। 

दोस्तों ,व्यक्ति कर्म से महान होता हैं जन्म या जात - पात से नहीं इसलिए हमें अच्छे कर्म करने चाहिए।



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