क्यूँ नहीं अब वो पहले वाली बात ?
क्यूँ नहीं अब वो पहले वाली बात ?
कहा गये वो फुर्सत के दिन ?
वो लबो पे हँसी और चमक आँखों में,
वो यारियां दोस्तों की और कहानियां माँ की,
वो दो रूपए की टॉफ़ी और साइकिल पापा की,
कहा गये वो फुर्सत के दिन ?
टांग के बस्ता जाते आज भी है,
दोस्त भी है कुछ बहुत ही अज़ीज़,
पर कहाँ गयी वो मुस्कराहट लबों की ?
क्यूँ अब वही आँखे है लाल ?
क्यूँ नहीं कोई देता दो रूपए वाली टॉफ़ी ?
बतलाता मै यही सब हर रात,
सुनता और कौन पर बस मेरी माँ,
जाड़े के दिनों में लगायी हुई है लकड़ियों में आग,
पूछता हूं माँ से एक ही सवाल हर रात,
क्यूँ नहीं है अब वही पहले वाली बात ?