प्रकृति की छटा निराली
प्रकृति की छटा निराली
अनोखी है यह चित्रकारी, प्रकृति की छटा निराली।
जीवन संगीत सुनाती अद्भुत सी रंगभरी मतवाली।।
सजा हुआ नभ में जो सूरज की बिंदिया का ताज।
देखो कैसे इतरा रहा है आज यह नीला आकाश।।
नव दुल्हन सी मुस्काए प्रकृति, कर सोलह श्रृंगार।
उस पर छाई है इंद्रधनुषी रंगों की अनोखी बहार।।
मंत्रमुग्ध होकर डोल रहे हैं वृक्ष और पुष्प लताएंँ।
कल-कल करती नदियांँ, ठंडी शीतल बहे बयार।।
हरियाली की ओढ़, चुनरिया हर्षित हो रही धरा।
कली-कली मचल रही मानो घूमर करे वसुंधरा।।
पुलकित हो रहा मन जुड़ रहे हैं खुशियों के तार।
बांहें फैला कह रही प्रकृति यही जीवन का सार।।
देख कर ऐसी शोभा अनंत, मन हो जाता पतंग।
खोकर इसकी गहराई में, दिल गाए गीत तरंग।।
असीम सुख की अनुभूति प्रकृति की गहराई में।
ढ़ल जाने को जी करता मेरा इसकी सच्चाई में।।
सुख का आधार प्रफुल्लित जीवन का ये दर्पण।
सब कुछ मिलता इसी से इसी को होता अर्पण।।
भाग्यशाली हर प्राणी प्रकृति का मिला उपहार।
मांँ समान प्रकृति जिस से जुड़ा सांँसों का तार।।
