विहान
विहान
एक सड़क और एक ही समय,
कचड़े वाली और मैं...
दोनों औरतें चल पड़े
बाहर सर्दी से मैं परेशान,
तन में लदे कपड़ों के बोझ से
खुद हैरान
पर, वो..थी बेखबर , झाड़ू देने
में मद-मस्त,
अपने कामों में थी अस्त-व्यस्त
उसे अपने पास आते देख,
मैं, नाक-भौं सिकोड़ने लगी
खामोश , वो ...
आँखे तरेर.. मुझे घूरने लगी
उसका उफनता कॉन्फिडेंस देख,
मेरा ओवर कॉन्फिडेंस डगमगाने लगा
मेहनत, श्रम, ईमानदारी, मेरे
करीब आ... मुझे खूब सिखाने लगा
सीख ले तू भी ...
सीखने की न कोई उम्र होती,
न कोई शर्म, न ही कोई सीमा
गहन कोहरा धीरे-धीरे छंट गया ,
सुनहरा धूप बिखर गया ,
मुरझाया...मेरा विश्वास
फिर से खिल उठा ,
सच, नया विहान मुझे भा गया