पथ से पग हैं अपरिचित
पथ से पग हैं अपरिचित
लड़ रहे जो लोग जीवन के लिए वे और होंगे,
कर दिया जीवन समर्पित ही लड़ाई के लिए है।
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पथ से पग हैं अपरिचित,
किन्तु पथ परिचित पगों से।
नींद टूटेगी तुम्हारी,
विश्व मेरे रतजगों से।
राह की प्रत्येक ठोकर,
कान में यह कह चली रे,
रक्त से रतनार पग ही इस चढ़ाई के लिए हैं।
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है पुरानी याद अब तो,
बढ़ चुकी है बात आगे।
नील नभ को देख मन में,
जब गरुड़ संकल्प जागे।
आँधियों ने शक्ति तौली,
और बोलीं रे परीक्षित !
बल नहीं संकल्प आवश्यक उड़ाई के लिए है।
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लेखनी की क्रोशिया ले,
धूप के रूमाल बुनता।
और शीतल ज्योतियों के,
जुगनुओं से हाल सुनता।
चाहता यश, धन, प्रतिष्ठा,
खोजता पथ दूसरा ही,
ज़िंदगी का व्याकरण आखर अढ़ाई के लिए है।।