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Varsha Agarwal

Inspirational Tragedy

4.0  

Varsha Agarwal

Inspirational Tragedy

“अब कौन ?”

“अब कौन ?”

1 min
404




दीप से दीप जलाये सबने,है आकुल अंतर वाणी मौन

बीत गये पल संवेदना के,देहरी दीप जलाये कौन ?


हाथ चिबुक रख लाड़ो पूछे,मेरी उँगली पकड़े कौन ?

बिठा-बिठा कंधे पर अपने,मेला मुझे घुमाए कौन ?


बोले बहना पथराई सी,राखी अब बँधवाये कौन ?

संजो रखे सपने पलकों में,डोली मुझे बिठाये कौन ?


अबकी बारिश छत टपकी थी,उसको ठीक कराए कौन ?

दीवारें ले गईं दरारें,उनको अब भरवाए कौन ?


बना रसोई किसे परोसूँ,ले चटखारे खाये कौन ?

हाथ चूम लूँ मात तुम्हारा,ऐसे शब्द सुनाये कौन ?


द्वार देहरी अँगन लिपाऊँ,पग-पग चिन्ह बनाये कौन ?

चुपके से पीछे से आकर,धप्पा धौल जमाये कौन ?


शब्दों में नहीं रहा स्पंदन,अर्थों को पहचाने कौन ?

होकर दूर पास थे कितने,लिख-लिख पाती भेजे कौन ?


रक्त लालिमा ज्यूँ सिंदूर की,चौथ को माँग भराए कौन ?

मेरी तो हर रात अमावस ,मेरा चंदा लाये कौन ?


मेरे घर का बुझ गया दीपक,अब अंतस उजियारे कौन ?

चाहे जितने सूर्य उगा लो ,मेरा सूर्य उगाए कौन ?



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