“अब कौन ?”
“अब कौन ?”
दीप से दीप जलाये सबने,है आकुल अंतर वाणी मौन
बीत गये पल संवेदना के,देहरी दीप जलाये कौन ?
हाथ चिबुक रख लाड़ो पूछे,मेरी उँगली पकड़े कौन ?
बिठा-बिठा कंधे पर अपने,मेला मुझे घुमाए कौन ?
बोले बहना पथराई सी,राखी अब बँधवाये कौन ?
संजो रखे सपने पलकों में,डोली मुझे बिठाये कौन ?
अबकी बारिश छत टपकी थी,उसको ठीक कराए कौन ?
दीवारें ले गईं दरारें,उनको अब भरवाए कौन ?
बना रसोई किसे परोसूँ,ले चटखारे खाये कौन ?
हाथ च
ूम लूँ मात तुम्हारा,ऐसे शब्द सुनाये कौन ?
द्वार देहरी अँगन लिपाऊँ,पग-पग चिन्ह बनाये कौन ?
चुपके से पीछे से आकर,धप्पा धौल जमाये कौन ?
शब्दों में नहीं रहा स्पंदन,अर्थों को पहचाने कौन ?
होकर दूर पास थे कितने,लिख-लिख पाती भेजे कौन ?
रक्त लालिमा ज्यूँ सिंदूर की,चौथ को माँग भराए कौन ?
मेरी तो हर रात अमावस ,मेरा चंदा लाये कौन ?
मेरे घर का बुझ गया दीपक,अब अंतस उजियारे कौन ?
चाहे जितने सूर्य उगा लो ,मेरा सूर्य उगाए कौन ?