ज़िंदगी
ज़िंदगी
क्या है ये ?
कैसी है ये ज़िंदगी?
कभी हँसाती तो
कुछ ज्यादा ही लाती।
देती है कुछ ज़रूर,
पर बदले में लेती बहुत कुछ।
दौड़ और भाग या बस
दौड़-भाग भर ही है ज़िंदगी
भागते को भगाती पर
रूकते को रूलाती है ज़िंदगी
ये सच है कि जिंदगी की दौड़ में
जो दौड़ा वो पाया भी।
पर उससे बहुत कुछ लुटवायी भी ज़िंदगी
पढ़ा है अखबारों में कि ज़िंदगी
का सबसे बड़ा रिस्क है।
कि आपने कोई रिस्क लिया ना हो।
पर कहता है मन कि रिस्क के बाद कैसी होगी ये
ज़िंदगी।
कोशिश तो करते हैं सभी
पर अपने-अपने तरीके से
कुछ तो दाँव ही लगा डालते हैं ज़िंदगी की।
ज़िंदगी बीत जाती है।
ज़िंदगी संवारने में
पर शायद ही संवर पाती है ज़िंदगी।
लोग कहते हैं संघर्ष का
दूसरा नाम है ज़िंदगी पर
ये हमें कहाँ बख्शे
इंसान तो इंसान
संघर्ष से भी संघर्ष कराती है ज़िंदगी।
कुछ ऐसे ही है जो जीते हैं ज़िंदगी
ज़िंदगी की कठिनाइयों को हराना।
है बड़ा मुश्किल पर
जो हरा जीते उसे वही तो
सच्चे मायने में जी पाता है ज़िंदगी ।।