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सिसकता है हिंदुस्तान

सिसकता है हिंदुस्तान

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सिसकता है हिंदुस्तान

आपस में जब लड़ते यहाँँ

हिन्दू, सिख, इसाई और मुसलमान

सिसकता है हिंदुस्तान।


दुश्मनों ने बार-बार हमपे वार किया

और हमने सदा उनसे प्यार किया

लेकिन जब घाटी होती है लहू-लुहान

सिसकता है हिंदुस्तान।


परवाह नहीं हमें बाहर के दरिंदों से

भय तो है घर के ही जयचंदों से

शहीद होता है जब कोई जवान

सिसकता है हिंदुस्तान।


खुद भूखे होते हैं, इसके बाबजुद

दूसरों के लिए रोटी उपजाते हैं

भूख और कर्ज़ से जब मरता है किसान

सिसकता है हिंदुस्तान।


गर यहाँँ के कुछ कुबेरों ने लोभ छोड़ा होता

आज फिर ये देश सोने की चिड़िया होता

क्यों करता यहाँँ से कोई प्रस्थान

सिसकता है हिंदुस्तान।


हर जगह अंधविश्वास का डेरा है

यह केवल आडंबरों का फेरा है

जब अपने ही दोष को बेपर्दा करता है इंसान

सिसकता है हिंदुस्तान।





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