प्रतिक्षा
प्रतिक्षा
लाज की ओट से
तकती बेबसी
कुछ नही दिखता दूर तक
अँधेरे के सिवा,
चाँद है पर
लक्षित नही होता
लाज की ओट से।
प्रतीक्षा है भोर की
जिसमे साक्षात्कार हो
दर्पण से और एक नया
ओट, नया श्रृंगार प्राप्त हो
और एक वस्तु
बोध दे दिया जाये शरीर को
तथा
प्यार और सम्मान का विश्वास
दिला कर
ख़ूबसूरत चीजों की तरह
उसे घर में सजाया जाये
रोज नई-नई
साड़ियां, गहने, पायल और चूड़ियों
से लुभाया जाये
जो कि गहने नही
एक जंजीर है
अप्रत्यक्ष रूप में
सभी प्रयासरत है
बंधक बनाने के लिए
उसे
लाज की ओट में।