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Mienakshi Raghuvanshi

Inspirational

2.6  

Mienakshi Raghuvanshi

Inspirational

तेरी आभा

तेरी आभा

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तेरी आभा से धुव्रित है जग सारा

जस जस छूता नील गगन को

लालिमा के संग संग में

मन सुहावन होता है और

सारा जग प्रणाम करता है।

ज्यो ज्यो बढ़ता तेज तेरा

भभक रहा तू, धधक रहा

जैसे कि देगा सब कुछ जला

भागते सब इधर उधर

छाया के हों शरण पड़ा ।

देख मनुष, तू भी इसी तरह 

जब आभा खुद की बिखरती है

जग बाते तेरी ही करता है

जैसे ही तुझने दंभ भरा

आलोचक सुर में फिरते हैं

न भूल तू कि डूबेगा ही

एक दिन तेरा भी कर्म सवेरा

और सांझ जरुर ही आयेगी

जीवन की वो स्वर्णिम लालिमा 

ढलते सूरज सी ढल जायेगी ।


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