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Mienakshi Raghuvanshi

Inspirational

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Mienakshi Raghuvanshi

Inspirational

भीगती नदी

भीगती नदी

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भीगती नदी निकल पड़ी

फिर अपने पड़ाव की तरफ

राह में मिले सिलवटें, अड़चनें

बिखरे हुए चट्टाने

पर निकल ही जाती है

अपनी राह ढूंढ कर

वो भीगती नदी,

कल कलरव धुन गाती

अपने ही सुर में 

कुछ नहीं देखती, न ही सोचती

चली ही जा रही है

वो भीगती नदी,

मैं देखती हूँ, राह की अड़चने

वो देखती हैं, किस तरह चले

मैं तकु वक्त को, साथ ये रुक पड़े

वो दौड़ती है वक्त को लिए चले,

मंज़िल खड़ी है इंतज़ार में उसके

साहस जो नहीं थम रहा

या वो डर सोचता बस अड़चनें,

लो चली जा रही वो भीगती नदी..।


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