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प्रेम की परिपाटी

प्रेम की परिपाटी

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प्रेम की परीपाटी पर

खड़े हैं हम और तुम,

लहरें खेल रहीं हैं

सूरज सोने जा रहा है

साथ ही चाँद जग गया है

वैसे ही कुछ सोये कुछ जागे

सपनों में हम और तुम

हर तरफ एक सरगम है,

सुर और प्रकृति में भी

एक बंधन है,

चारों तरफ चंचलता ही

चंचलता है,

इस शोर में लेकिन

ख़ामोश हैं हम और तुम

हवा छू रही फूलों कों

रागिनी छेड़ रही राग को

हर तरफ बिखरा है स्नेह बंधन

प्रेम ही तुम्हारा मेरा दर्पण

इस दर्पण में स्वयं को

निहारते हम और तुम

उजाले से अंधेरा है

रात से ही सवेरा है

परिन्दों से ही बसेरा है

खिज़ा से बहार है जैसै

वैसे ही एक दूजे का अस्तित्व

स्वीकारते हम और तुम।


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