स्त्री एक पहेली
स्त्री एक पहेली
दिये की ज्योत जैसे जलती है तू
फिर भी उजाला देती रहती है तू
गिरते,संभलते फिर उठती है तू
कहाँ से इतनी हिम्मत लाती है तू
स्त्री अपने आप में एक पहेली है तू
खुद सह तकलीफ़ संवारे सबको है तू
टूटने ना दे हौसला वो ज़ज़्बा है तू
अगर कुछ ठान ले वो पूरा करती है तू
आसानी से ना झुके वो स्वाभिमान है तू
स्त्री अपने आप में एक पहेली है तू
कभी ना हारे वो उम्मीद की किरण है तू
बिखरे ख़ुद तो भी समेट लेती है तू
बुलंद इरादों की अनोखी मिसाल है तू
हर कठिनाई पार कर ले रही है तू
स्त्री अपने आप में एक पहेली है तू
एक ममता से भरी मूरत है तू
वक्त के साथ दुर्गा भी बने है तू
एक मासूम सी मुस्कान है तू
हर जगह ,हर दिल में बसी है तू
स्त्री अपने आप में एक पहेली है तू