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Meera Parihar

Abstract

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Meera Parihar

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धुंध हटी

धुंध हटी

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धुंध हटी अम्बर से रश्मि चौखट लांघ चली।

दर,मुंडेर, छत तानी चूनरी शुभ्र,धवल ,मलमली।

है ये कैसी घाम सताती नहीं ह्रदय ना तन को।

मन प्रफुल्ल कर ओजस दे, भरमाती है मन को।।1


शुभ प्रभात सिन्दूरी सुनहला मूंगे माणिक जड़ित रुपहला।

धरती के आंचल से निकला, नदियों में नहाने को मचला।

लगा- लगा गोते वारि में ,रवि नाप रहा दूरी भू नभ की।। 2


पिछवाड़े में चिहुक-चिहुक चर, फुदक-फुदक खग आये।

मचा रहे ये शोर नीम पर ,गुड़हल पर भवरें भनभनायें ।।

कहीं नाचते मोर बाग वन, कहीं मोरनी खड़ी ठगी सी। 3


हुए मगन मद मस्त गगनचर ,बना रहे नित नूतन तृण घर।

कहीं प्रणय ,कहीं विरह, कहीं पर, वीत राग का विपुल समन्दर।

कोटि-कोटि संकल्प,स्वप्न कर ,मुदित मही अहवात मयी सी।4


धानी धरती-उन्मुख अंबर, बासंती रितु मदन महीना।

हर्षित हैं नर नारि देख कर हुआ सार्थक बहा पसीना।

सपने लेंगे मूर्त रूप तब , जब फसल कटेगी सोने सी।


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