STORYMIRROR

Dr. Akansha Rupa chachra

Romance

4  

Dr. Akansha Rupa chachra

Romance

रिश्ते रूह के अमिट छाप

रिश्ते रूह के अमिट छाप

1 min
310


रिश्ते ये तेरे मेरे

कुदरत के

लेखे हैं

हाथों की लकरों

में खुद खुदा ने

लिक्खे हैं।


जमाना जिसे

समझा नहीं

हम वही तो

रिश्ते हैं,

रस्म़ों-रिवाज की

फांद दीवारें

ल़ोकलाज की तज

दहलीजें

हर युग में हम

मिलते हैं।


सीता बन

मैं राम तुम्हारे

संग वन-वन डोली,

बन सावित्री

यम से भी छीन

मैं सत्यवान तुम्हारी

हो ली,

राधा सी प्रेमिका

जो बिन ब्याहे ही

कृष्ण तुम्हारी बनी

प्रेयसी,

दुष्यंत-शकुंतला और

नल-दमयंती की 

जिंदगी थी हमारी।


पुराणों से कलयुग

तक आते कहाँ बदले रिश्ते अपने....?

बनके लैला-मजनूँ,

हीर-रांझा,शीरीं-फरहाद,

मिर्जा-साहिबा,ढोला-मारु

हमने,हर जुल्म सहे 

जमाने भर के।


सच रिश्ते

सनातनी हैं अपने

जो युग मिटे

पर हमें नहीं मिटा पाये,

याद कहानी-किस्सों में

गीतों से कभी न

हटा पाये,

जिस्म फना होते रहे

मगर रुह हमारी

जिंदा रही,

तभी तो हमारे

रिश्ते दिल के करीब रहे।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance